कुमारपाल चरितम | Kumar Pal Charitam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४) गुजरात में ऐसे कई प्रभावक व्यक्ति हुए हैं । सिद्धराब जयसिह, परमाहंत कुमारपाल, महामात्य वस्तुपाल, जगडूशाह और पेथडशाहू आदि इसी प्रकार के उदारमना, धर्मपरायण एवं साहिंत्यप्रेमी व्यक्ति थे, जिनके जीवन से प्रभावित होकर जैन कवियों ने उन्हें काव्य का नायक बनाया है । हेमचन्द्र कृत “दूयाअमकाब्य बालचन्द्रसूरि कृत “वसन्तविलास” एवं उदयप्रभसुरि कृत “घमम्युदय”' इसी प्रकार की ऐतिहासिक्र रचनाएं है । थे रचनाएँ काव्य एवं इतिहास दोनों हृष्टि से महत्वपूर्ण हैं ।' गुजरात के इतिहास के लिए कई जैन काव्य महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करते है। ठाकुर अरिसिहकृत “सुकतसकीतंन” नामक काव्य मेँ महामात्य वस्तुपाल के जीवन एवं उनके लोकप्रिय कार्यों का वर्णन है । यह पहला ऐतिहासिक काव्य है, जिसमे चावडावश का बर्णन है। बालचद्धसूरि कृत॒ “'वसन्तविलास” नामक काव्य वस्तुपाल के जीवनचरित पर विस्तार से प्रकाश डालता है । इस ग्रन्थ मे जयसिंह, कुमारपाल एवं भीम द्वितीय का भरी वणेन किया गया है। जयरसिहसूरिकृत “कुमारपाल भूपालचरित” एक घटना-प्रधान काव्य है। इस ग्रत्थ मे कुमारपाल सम्बन्धी कर्‌ अलौकिक घटनाओं का वर्णेन दै । सोमग्रभकृत ““कुमारपाल प्रतिबोध एक कथाकोश है ! इसमें कुमारपाल के जीवन के सम्बन्ध मे कुछ तथ्य प्रस्तुत शिये गये है । मुनि जिनविजय जी ने “कुमारपाल चरित्र सप्रह” नामक ग्रत्य मे कुमार- पाल के जीवन से सम्बन्धित कुछ प्राचीन काव्य प्रन्थो का परिचय दिया है। इन सब रचनाओं के परिप्रेक्ष्य में यह कहा जा सकता है कि कुमारपाल के जीवन-चरित ने कई जेन कबियो को काव्य सुजन के लिए प्रेरित किया था । उन सब का. आदेश आचार्य हेमचन्द्रकृत “दूयाश्रयकाव्य रहा है गाचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित दयाश्रयकाव्य के दो भाग है । प्रथम भाग में २० सर्ग है एव द्वितीय भाग में ८ सगे है । इस तरह यह कुल २५८ सर्गों का महा- काव्य है । भाचार्टा हेमचन्द्र ने अपने इस प्रत्थ का यह विभाजन स्वरचिते 'हिमशब्दा- नुशासन' व्याकरण ग्रन्थ को ध्यान मे रखकर किया है । उनके इस व्याकरण ग्रन्थ मे प्रथम सात अध्यायो मे सस्कृत व्याकरण के सूत्र हैं एव अन्तिम आठवें अध्याय में प्राकृत व्याकरण के नियम वर्णित है । सस्कृत एव प्राकृत व्याकरण के इन नियमों के अनुसार शब्दों के उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए आचार्य हेमचन्द्र ने 'दयाश्रयकाब्य' लिखा । इसके द्वारा उन्होंने दोहरे उद्देश्य की पूर्ति की है। एक ओर चौलुक्यवं शी; राजाओ के जीवन-चरित का वणन हो जाता है एव दूसरी ओर संस्कृत-प्राकृत के १. द्रष्टब्य--चौधरी, गुलाबचन्द : जैन साहित्य का बृहत्‌ इतिहास, भाग ६, पृष्ठ ३६२४७४६.




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