ज्योतिष्मती | Jyotishmati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्योतिष्मतीं
होता कभी न म्लान जो
हो तुम वह अरविन्द
रूप-सुधा-रस का रसिक,
में हूँ एक मिलिन्द।
मे हँ एक मिलिन्द
प्रीति तुममे रखता हूँ,
सतत सरस मकरन्द
तुम्हारा में चखता हूँ ।
बहता रहता सदा
तुम्हारे रस का सता,
पर ता भी संताष
न मुझ लोलप का होता ।
गगन-विहारी भानु दो
तुम अति तेज-निधान,
एक सितारा द्र में
दीन मलीन महान ।
दीन मलीन महान
धेर में बसता हूँ,
पाता हूँ जब ज्योति
तुम्हारी तब हँसता हूँ ।
पर पेरे हित क्या न
यही गौरव हे भारी ?
में भी हूँ युति-प्राण
तुम्दी-सा गगन-विहारी |
६
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