मालिक और मजदूर | Malik Aur Majadur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ काम का बटवारा रहेगा, किन्तु सवाल यह हैं कि हम कंसी व्यवस्था करे कि जिससे यह बटवारा ठीक-ठीक हो जाय । लोग कहते हे--कुछ मानसिक और आध्यात्मिक श्रम करते हूं; क्या यह काम का बंटवारा नही है? उनको श्रम का यह बेंटवारा बिल्कुल ठीक प्रतीत होता ह, किन्तु हं यह वास्तव मे वही प्राचीन बलात्कार कां नमूना “तुम मुझे भोजन दो, वस्त्र दो और मेरी सब तरह सेवा चाकरी करो, क्योकि तुम बचपन से ऐसा करने के अभ्यस्त हो और में तुम्हारे लिए वह मानसिक कार्य करूँगा जिसका सुभे अभ्यास हं। तुम मुभे शारीरिक भोजन दो और में उसके बदले में तुम्हें आध्यात्मिक भोजन दुगा । ” यह कथनं सही प्रतीत होता हं, किन्तु वास्तव में वह सही तभी हो सकता है जब सेवाओ का यह्‌ आदान-प्रदान स्वेच्छापूवंकं हो; शरीर श्रम करने वालों को आध्यात्मिक भोजन पाने से पहले ही अपनी सेवाएँ देने के लिए मजबूर न होना पड़ता हो । आध्यात्मिक भोजन देने वाला व्यक्ति कहता है--“में यह भोजन तभी दे सकता हूँ जब तुम मुककको भोजन दो, वस्त्र दो, और मेरे घर का कड़ा ककेंट हटा कर केजाओ।'” किन्तु शारीरिक भोजन सुलभ करने वाले व्यक्ति को अपनी ओर से बिना किसी प्रकार की माँग किए उपरोक्क काम करना पड़ता है । उसे आध्यात्मिक भोजन मिले या न मिले, शारीरिक भोजन देना ही होता है। यदि यह आदान-प्रदान स्वेच्छापुर्वक हो तो दोनों पक्षों के लिए उसकी शर्ते भी समान ही हों । यह सच है कि मनुष्य के लिए शारीरिक भोजनं की भोति आध्यात्मिक भोजन भी आवश्यक होता ह । विह्ान व्यक्ति अथवा कलाकार कहता है : “हम मनुष्यों की आध्यात्मिक बोजन द्वारा तभी सेवा कर सकते हे, जब वे हमारे लिए शारीरिक मोजन सुलभ करें ।” किन्तु शारीरिक भोजन देने वाला भी क्यों न कहे--““हम आपके लिए ज्ञारीरिक भोजन सुलभ करना शुरू कर,




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