सभाष्यतत्त्वर्थाधिगमसूत्र | Sabhashyatattvawarthadhigamasutra

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Book Image : सभाष्यतत्त्वर्थाधिगमसूत्र  - Sabhashyatattvawarthadhigamasutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-सूची । ११ (५०१००००० ० ५ न त १ ० ^+ दिग्रत, देदा्रत, अनधेरदष्ड्रत, सामापिकत्रत परिप्रह्प्रमाण त्रतके अतीचार ३४५ पौषधोपदास, उपभोगपरिमोगवत, ओर अतिथि दिखतके अतीचार ३४५ संविभागव्रतका स्वरूप १३५ | देदात्रतके अतीचार ३४६ सिलनात्रतका स्वरूप ३३८ | अनथेदड्रतके भतीचार ३४६ शका! कांक्षा, बिचिकित्सा, अन्यरपरशंसा, सामायिकन्रतके अतीचार ३४७ ओर अन्यदतिसतव्‌, सम्यग्दरोनके पाच अती- पौषधोपवासवरतके अतीचार ३४८ चारोंका स्वरूप २३३९ | भोगोपभोगव्रतके अतीचार ३४९ अहिंसा आदि त्तो जीर सप्तशीछोंके पाँच... | अतिथिसंविभागके अतीचार ५९ पाँच अतीचार २४१ | सेखनाव्रतके अतीचार ३५० अरित्र भतीचार ३४१ | दानका स्वरूप ३५१ सत्याणुत्रतके अतीचार ३४२ अनणा क दानमे विरेषताके कारण ३५१ ब्रह्मचयत्रतके अतीचार ३४४ इति सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥ अष्टमे अध्याय । मैधतत्वका वणेन गोत्रकमके २ भेदॉका स्वरूप ३७१ बंधके ५ कारण मिथ्यादशन, अविरति, प्रमाद, प्रकृतिबंध-अन्तरायक्मके पाँच मेदॉका स्वरूप. ३७३ और योगका स्वरूप ५३ | स्थितिबंधकी उत्कृष्ट स्थिति ३७४ संध किसका होता है? किस तरहसे होता है! मोइनीयकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति ३७४ और उसके स्वामी कौन हैं? ३५४ | नाम मौर गोत्रकमैकी उत्कृष्ट स्थिति ३५७५ कामणव्मणाओंका श्रहणरूप बैधक्रा वशन- ३५५ | आयुकमेकी स्थिति ३५५ ग्रहणरूपबंधके प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और बेदनीयक्मकी स्थिति ३७५ प्रदेशबंध ४ मेदोका वर्णन ३५५ | गोत्रकमकी जघन्य स्थिति ३७५ प्रकृतिबंधके भेद ३५५ | बाकी कर्मेकी जघन्य स्थिति ३७५ +, ३५६ अनुभागबंधका लज़ण ३७६ ज्ञानावरणके पाँच भेद ३५७ | कर्मका विपाक किस रूपमें होता है । ३७७ दशौनावरणके ९ भेद ३५७ | नामके अनुरूप विपाक हो जानेके अनन्तर वेदनीयकमैके २ भेद ३५७ | उन कर्मोका क्या होता है - ३५५७ मोहनीयकमके २८ मेरदौका वणेन ३५८ | प्रदेशबंधका वर्णन ३७८ आयुष्कप्रकृतिबंधके ४ भेद ३६५ | पुष्यरूप और पापरूप प्रकृतियॉका विभाग ३७९ नामकमके ४२ भेदोंका स्वरूप ३६७ इति अष्टमोऽध्यायः ॥८॥ ९ नवम अध्यायः 1 संवरतत्त्व और निजेरातत्व वन १ द्या २ भाषा ३ एपणा ४ आदाननिक्षेपण संबरका क्षण ३८१ | ५ उत्सग पाँव समितियोंका स्वरूप ३८३ किन छिन कारोत कर्मोका आना सकता है । ३८१ | १ उलम क्षमा २ मार्दव, ३ आजव, ४ शौच, ५ संबर-सिद्धिका कारण-तपका स्वरूप ३८१ । सत्य, ६ संयम, ७ तप, ८ त्याग, ९ भाकिशन्य, गुप्तिका लक्षण ३८२ ¦ ओर १० ब्रहमचयै, दस धर्मोका सरूप ३८५




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