भगवान महावीर का दिव्य सन्देश भाग - 1 | Bhagavan Mahavir Ka Divya Sandesh Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : भगवान महावीर का दिव्य सन्देश भाग - 1  - Bhagavan Mahavir Ka Divya Sandesh Bhag - 1

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about चौथमल जी महाराज - Chauthamal Ji Maharaj

Add Infomation AboutChauthamal Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भगवान्‌ मद्दादार का दिव्य सदरा | (११) वहा, वह नाना प्रकार की यम-यातनाओं को चिरकाल तदः सहता रहता ह । जा फिसी के साथ कपट का व्यवहार फते है, कपट ही जिन प्रासीयों का पान-पान+-लेनःदेन, तथा, घाहार और विहार दै, भूठ तो जिन्हें जन्म ही से प्यारा दै, किमी के ठग लेने ही में जा थपनी ठकुराई समकते हैं ऐसे प्राणी, मरण के झमन्तर, तियेक्‌ ( पथु पची, वा कीट-पतङ्ग ) शमादि श्रांदि झघम योनियों में जन्म-धारण कर, थर जन्म के शनक प्रकार के जधन्य यौर कारिक कट को सहतें हैं । वरन्च, ज विनय-शील थोर कपट से गोतो दूर रहने पाले हैं, जिनके विचार उच्च और जीवन सदा सादा ह, जिनके रग रग में दयाका सब्चार है, जिन्होंने इंप्यी को ईति भीति मानकर त्याग दिया हे, वे मरण के पथात्‌ भी पुन मरुप्य- जन्म दी ग्रहण करते दै । इसी प्रकार, जे थशुत्रत रूप धमे का पालन करने वाला गृहस्थ मौर सराग सयम-धारी साधु तथा लो इच्छा के न रहते हुए भी शीताप्णादि करों को सदन करते हैं, भौर जो ज्ञान-रहित तपश्चरण करते दै वे यहा से मरणं के पात्‌ स्वे मे जा धार देवत्व को धारण कर, देवताओं ऊ प्रधान सुपो का उपमोग करते दै । जितने भी नुरुकू के जीव हे, नारकीय नगरण्य `




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now