बाल व्यवहार विकास | Bal Vyavahar Vikas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
22 MB
कुल पृष्ठ :
358
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटी है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. सरयू प्रसाद चौबे - Dr. Saryu Prasad Choubey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बाल अध्ययन के विकास की रूपरेखा ^ ५ईस प्रकार उपयुक्त तथ्यों को लेकर प्रकार विशेष से की जाने वाली अध्ययन की
रीति अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुई. 'ख' अपसमायोजित बच्चों का अध्ययन
(तव ग 2184] ण516त (110)अपसमायोजित बालकों पर १९वीं शताब्दी में ही ध्यान दिया गया था । इसशताब्दी में इन्हें तीन श्र णियों में विभाजित करके इनके विशेष अध्ययन की व्यवस्थाकी गई । बुद्धि-परीक्षा के आधार पर मानसिक दुबलताविभिन्न श्र णियों में अध्ययन वाले बच्चों के निर्वाचन से उनका एक अलग समूहबनाकर अनुक्रूल स्तर को शिक्षा प्रदान करने की योजनाकार्यास्वित की गई । दूसरी श्रेणी में उन अपसमायोजित बालकों को रखा गयाजिनके अपसमायोजन का कारण--घर, स्कूल अथवा समाज का प्रतिकूल वातावरणथा । ऐसे बच्चों के, मनोव॑ज्ञानिक रीति से उपचार की व्यवस्था की गई । तीसरीश्रणी मेंवे बच्चे थे जो अपनी तीव्र बुद्धि के कारण सामान्य बच्चों से भिन्न हो गयेथे । उनके समुचित विकास हेतु, बौद्धिक स्तर के अनुकूल आवद्यक पाठ्यक्रम और
शिक्षा की व्यवस्था की गई।ग व्यवहारो के आधार पर दिशु-अध्ययन१९ वीं शताब्दी मे प्रचलित बाल-विकास के अध्ययन की जीवनी पद्धति
हारा प्रत्येक बालकं का अध्ययन व्यक्तिगत रूप में हो पाता था । उसी आधार पर
बाल समूह की गति-विधियों का अनुमान कर लिया
शिश्यु-अध्ययन की जौवनी- जाता था। अतएव यह पद्धति पूर्णतया दोष-मुक्त नहीं
एद्धति का अन्त कही जा सकती । वतमान शताब्दी में अध्ययन का
आधार बालक का व्यक्तिगत ओर सामूहिक-व्यवहार
मानकर पद्धति को अत्यधिक उपयुक्ता और वंँज्ञानिकतोी प्रदान की गई । अनुमानका स्थान प्रत्यक्ष अवलोकन और अनुभव ने ले लिया |'घ' बुद्धि परीक्षण हारा अध्ययन(७{९$ ४४ [17६्ना{६८०८८ (651)
२० वीं शताब्दी कै प्रथम दशाब्द तक बुद्धि-परीक्षण में पर्याप्त प्रगति हो
चको थी । इस प्रणाली-प्रवृत्ति अथवा रुफन-परीक्षण को भी समुचित स्थान प्राप्त
था । परीक्षण मे प्रत्येकं बालक के जीवन स्तर, लिंग,
परीक्षण द्वारा स्तर निर्धारण जाति और सामाजिक मूल्यों को यथेष्ट महत्त्व प्राप्त
एवं पाठ्यक्रम का निर्माण होने के कोरण विभिन्न बालकों के विकास के अन्तर ओर
उसके कारणों का पता सुगमता से चल जाता है । अतएव
विकास स्तर के अनुसार उन्हें विभिन्न श्रेणियों में विभक्त करके तदनुरूप उनकेपाठ्यक्रमों का चयन किया गया ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...