सोवियत साहित्य पुस्तक माला | Sobiat Sahitya Pustak Mala

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Sobiat Sahitya Pustak Mala by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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और लोग बड़ी बेरहमी से उसे पीटते। मुझे वह वाक्‌-चातुय से समभाता : “तुम भी यार किस फेर में पड़े हो? लड़कियों की तरह लजाघधुर होने से कहीं दुनिया में काम चलता है? डरते किस चीज़ के लिए हो -- इज्जत के लिए? इज्जत तो लड़कियों की पूंजी है। हमारे - तुम्हारे लिए तो यह गले के तौक के सिवा कुछ नहीं। अलवत्ता बेल ईमानदार होता है, पर यह भी तो. सोचना चाहिये कि बेल भूसा खाकर पेट पाल सकता है। बाइिकिन नाटे क़द का था -- लाल लाल बाल और एक्टरों की तरह दाढ़ी - मुंछ सफ़ाचट। उसका उठना - बैठना , चलना - फिरना बिल्ली के बच्चे की. याद दिलाता था -- मुलायम और निद्दव्द। मेरे प्रति उसका व्यवहार बुजुर्गों का सा था -- सदा मुक्त सीख देना और मेरी भलाई का खयाल रखना। उसकी हार्दिक कामना रहती थी कि में सुखी और समृद्ध बनूँ। दिमाग़ का वह बड़ा तेज़ था और पढ़ा भी था काफ़ी ।. पर “* काउंट आफ़ माँट क्रिस्टो” किताब उसे सबसे अधिक पसन्द थी। वह कहा करता था: “ किताब है तो वह। अलबत्ता उसका लेखक दिलदार था। साथ ही उसने जो लिखा है, उद्देय लेकर।” वह बड़ा आदिक्रमिज़ाज था। औरतों की चर्चा में उसे बड़ा रस आता था। उनकी बात छिड़ती तो जीभ से ऑंठ चाटने लगता और क्षय से टूटे उसके शरीर में सिहरन उठने लगती। वह दरीरकम्पन . मुझे अस्वस्थ और घुणित मालूम होता था। पर में पूर्ण उत्कंठा के . साथ उसकी बातों को. सुनता। मुझे उनमें सौन्दर्य का भास होता था।. १६




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