धर्मदेशना | Dharmadeshana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ दे श्रीसान शेठ गोहरीदा सजी 1 स जिनेकी पुण्यस्ति मे यह भूवं अव प्रकारितत किया जाता है, वे गृहस्य होते हुए साधुवृत्तिवाले थे । व्यवहारकुशल होते हुए निश्चय मेँ सूच श्रद्वा ये 1 पताप्तारिकि कायौ को कतत हश्‌ मी उदासीनवृत्तिबाले थे। काठेन हाईस्कूल वौरह की आधुनिक: अग्रेनी के ब्द्विन्‌ नहीं होते हुए भी बड़े बड़े अरेन्यूएटें को भी ज्ञानचर्चा मं पगस्त करनेवाले थे । सेठ गोडीदाप्तनी क्रियाकाढ़ मे खच माननेवाले-भाचरण करनेव्े होति हुए मी ज्ञानक सचे उपासक, उपासक ही नहीं, प्रचारक भी थे । स्ति कं ग श्रीमत-सुख की आधुनिक सामप्रियों से सम्पत्त रहते हुए मी त्याग और बैराग्य रे वे ओतप्रोत्त रहते थे । संत्ेपसे कहा जाया तो, सेठ गोडीरापतनी, यने घर्म की मूर्ति, सेठ गोडीदाप्तनी, यानि पक्र परोपकारी गृहस्य, सेठ गोडीदापनी, याने नन पतमान का एक रत्न, ओर्‌ सेर गोरीदामनी, यने गृहस्थो का एकर सवः भादरं | आन मोपा का नाक, सेठ गोदीदापतनी, इष सपार मेँ नहीं है, परन्तु उनकी भर्मशीर्ता, उनकी परोपकारिता, उनके




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