धूप - घड़ी | Dhoop-ghadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३- कोई सच्ची घड़ी जो ठीक समय बतलाती हो लो आग उस घड़ी झर स्थानीय मध्यान्द का छन्तर मालूम हो. ता इस घड़ी के द्वारा मध्यान्ह जख कर उस समथ संहावेल बी छाया पर चिन्ह लगा दा यहां उत्तर दत्तिश रेस्वा होंगी । ४- कुतुबनुमा से जो उत्तर जाना जाता है वह ठीक नहीं हाता। उसके उत्तर श्ौर छाया द्वारा उत्तर निकाले हुये में जा ध्न्‍्तर हो वह नोट करलो, फिर कुतुबनुमा से इसी प्रन्तर पर ठीक उत्तर मालूम हो सकता है | इन युक्तियों से उत्तर दक्षिश श्मर्छी तरह जांचलो । इस उसर दस्तिण रखा की दिशा में धूप घड़ी के वास्ते जा लकड़ी, पत्थर, लोहा आदि स्थित किया जाता है शंकू हलाता है | उस की छाया देखने के लिये कोई घरातल या दीवार हनी चाहिये जिस पर छाया प्न और उसी पर घट, मिनट भ्ादि के स्थान अंकित किये जाव: जिस पर यह श्रित किये जाव डायल कहलाता है । | यह शंकुःमोर डायतत दानां मिलकर धूप घड़ी कहलाते. हैं। धृप घड़ी बनाने के लिये इन बातों की श्यावश्यकतः हैः- (5) शकु बनाना (२) डायल का धरातल ठीक करना । (२) डायल के बीयों बीच शकु का इस प्रकार स्थापित करना ङि बह किसी प्रकार हिलमे न पाये और टीक ऊध्वेघर हो । (४) इस घपघड़ा को स्तम्भ पर इस प्रकार रखकर अमाना कि ग्रः ठीक उत्तर दिशा में हो, अधात उसकी काया मध्यान्द में डाक उत्तर में हो । ६३




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