भेद में छिपा अभेद | Bhed Men Chhipa Abhed

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Bhed Men Chhipa Abhed by युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर्म और राजनीति हर हृदय-परिवर्तन काम कर सकता है। आदिम युग मे एक समय ऐसा था, जब राज्य और राजनीति नहीं थी, किन्तु सव लोग स्वत अनुशासित थे। उस समय न कोई छीना-झपटी होती थी, न अपराध और चोरिया होती थी। इसका कारण यह था- उस समय आवश्यकताए अल्प थी और पदार्थ अनत। . इस स्थिति मे हृदय-परिवर्तन के द्वारा समाज की व्यवस्था चल सकती है। जहा आवश्यकताए बढ जाए, आवश्यकता के स्रोत कम हो जाएं, पदार्थ की खपत ज्यादा हो जाए, उपभोक्ता बढ जाए, वहा हृदय-परिवर्तन द्वारा समाज+को शासित किया जा सके, यह सभव नही लगता। जहा चोरी, छीना-ज्ञपटी आदि समस्याए उभरती रहती हैं, वहा कानून और व्यवस्था की अनिवार्यता को नकारा नही जा सकता। इस स्थिति मे राजनीति ओर राज्य-व्यवस्था का विकल्प ही समाधान बनता है। राजनीति : लक्ष्य की रेखाए राज्य की स्थापना के साथ यह लक्ष्य जुडा रहता है- समाज मे सुख एव शाति रहे। समाज को सुख मिले, सुविधा के साधन-उप्रलब्ध हो। समाज मे अपराध न हो, कलह और छीना-झपटी न हो। बडे लोग छोटो पर अन्याय न करे। राजनीति के सामने लक्ष्य की ये रेखाए रहती हैं और इन रेखाओ के आधार पर राजनीति के द्वारा राज्य की स्थापना होती है। इन लक्ष्यो के अनुरूप समाज निर्माण के प्रयत्न चलते हैं। यह स्पष्ट है-जहा- राजनीति है वहा व्यक्ति का प्रश्न नेही हो सकता, हदय-परिवर्तन का प्रश्न नही हो-सकता। राजनीति के सामने दूर तक जाने वाली नैतिकता का प्रश्न भी नही होता। राजनीति के साथ नैतिकता का प्रश्न उपयोगिता से जुडा हुआ है। उपयोगितापरक नैतिकता राजनीति के क्षेत्र मे अवश्य उपलब्ध हो सकती है। यदि हम वर्तमान राजनीति के साथ विशुद्ध नैतिकता का प्रश्न जोडना चाहे तो शायद वह सभव नही है। राजनीति ओर नैतिकता कछ पाश्चात्य चिन्तको ने राजनीति का नैतिकता के साथ विचार किया है। कू भारतीय चिन्तको ने राजनीति का धर्मके साथ सवध




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