कहानी खत्म हो गई | Kahani Khatm Ho Gayi
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.95 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कहानी ख़त्म हो गई श्भ्र एक दिन बूढ़े सर्वेराहकार रोते हुए मेरे पास आ्राए। चौथारे बहाते हुए उन्होंने कहा--बर्बाद हो गया छोटे सरकार लुट गया लड़की मेरी विधवा हो गई उसकी तकदीर फूट गई । मेरी इकलौती बेटी थी सरकार उसे बेटा बंना- कर पाला था । उसपर यह गाज गिरी । बूढ़ा बहुत देर तक रोता रहा । यद्यपि वे सब बातें मैं भूल चूका था पर स्मृति के चिह्न तो बाकी ही थे । सुनकर सु दुःख हुआ । बूढ़े को तसलली दी । और जब वहू चला गया एक बूंद भ्रांसु मेरी ्रांख से भी टपक पड़ा। वाहियात बात थी । लेकिन मन का सच्चा तो सदा से हुं । मेरा मन द्रवित हो गया । बूढ़े ने कहा था कि वह उसे यहां ले झ्राया है तब एक बार उसे देखने की भी लालसा हो गई । पर वह सब बात मन की थी मन में रही । महीनों बीत गए । कभी-कभी उसका ध्यान भ्राता दया भ्राती पर कुछ विदेष झ्ाकर्षण न था । सुषमा धी रे-धीरे कमजोर श्रौर पीली पड़ती जा रही थी । मुभ्के उसकी चिन्ता थी । ज्यों-ज्यों डिली- वरी का समय निकट झा रहा था मेरी उदट्िग्नता बढ़ती जाती थी--इन सब कारणों से मैं उस बिचारी विधवा को भूल ही गया । सुषमा के प्यार ने मुभे अभिभूत कर लिया था । सुषमा मेरे जीवन का झ्राधार थी । श्रौर भ्रब मैं इस प्रकार के विचारों को भी मन में रखना पाप समभता था । पाकर सुषमा भी खुश थी । वह देवता की भांति मेरी पूजा करती थी । मिसेज़ दर्मा एकदम द्रवित हो उठीं । उन्होंने कहा--भई बंद करो । झ्राप सचमच देवता हैं। श्राप जेसा पति पाने के कारण मैं तो सुषमा बहिन से ईर्ष्या करती हूं मैं जैसे चीख पड़ा । मेरे गले की नसें तन गईं श्र मृह्ियां शिच गईं। मैंने कहा--श्रीमतीजी जल्दी अपनी राय कायम न कीजिए पुरी कहानी सुन लीजिए । मेरी और भावभंगी देख मिसेज दार्मा डर गईं। वे फटी-फटी अांखों से मेरी भ्रोर टुकुर-टुकुर देखने लगीं। मैं इस योग्य न था कि इस समय उनसे अपने श्रदिष्ट व्यवहार के लिए क्षमा मांगूं । मैंने कहानी भागे बढ़ाई एक दिन देखेता क्या हूं कि वह सुषमा के पास बेठी है। इस समय वह यौवन से भरपूर थी । उस समय यदि वह खिलती कली थी तो राज पूर्ण विकसित पुष्प । परिधान उसका साधारण था । पर स्वच्छता भर सल्लीका जो बहुधा देहात में. नहीं देखा जाता उसकी हर श्रदा से प्रकट होता था । उसका रंग अब ज़रा श्र
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