जीव - विज्ञान या जीव - सूत्र | Jiv - Vigyan Ya Jiv - Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ = सा हानो चाहिए । यदि उपमा, रूपक इयादि श्रते भी हे ता तिका बाहर करिये जार्यै। यदि एक भो कठिन शच्द ( भ्रथात्‌ वह शब्द जा सर्वसाधारण मे मलो मति प्रचलित नहीं है) ग्राना चाहे तान झाने दिया जाय । इत्यादि! परन्तु मुम्फे ता यदह समभर पड़ता हैं कि ऐसे कठिन शब्दों के अस्तित्व मात्र से भाषा दुरूदद अथवा हेय नही हा जाती ¦ रामायण मे ऐसे कठिन शब्दों की कमी नहीं फिर भी उसकी भाषा सर्वेजन-प्रिय हो! रही हैं। फिर उपमा, रूपक इत्यादि के पीछे लट्ट लेकर मिड़ जाना भौ सुभ उचित नहीं जान पडता ¦ हाँ, उनको आराधना करते ही न बैठे रहना चाहिए! परन्तु यदि वे स्वाभाविक रूप से श्रा जार्यं चैर अपने श्रस्तित्व से वण्यं विषय का रोचक बना दें ता इसमें वुराई ही क्या है ? मैं तेः उसे हो उपयुक्त भाषा कहूँगा जा जीवित सी जान पड़, कोरी बनावट से अलग रहे, वण्यै विषय को मला भांति श्रौर रोचकता के साथ प्रक्रट कर सके। मैंने इस ग्रन्थ की भाषा-शेलो में बनावट लाने का रत्ती भर भी प्रयन्न नहीं किया हैं । हृदय से जा शैली स्वच्छ- न्इतापूर्वक निकलती चलो गई उखे ही वर्यो में श्रङ्किति करता चला गया हूँ । यद्द शेली यदि पाठकों को विशेष त्रुटिपूण जान पढ़ेगी ता अगले संस्करण में यथाशक्ति इसका परिमाजन कर देने का प्रयन्न करूगा । इस ग्रन्थ में भी प्राचीन भारतीय दाशेनिक ग्रन्थों के समान सू्चो का अयोग हन्ना है। सूत्र-रूप से यदि कोई




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