प्राकृतिक जीवन की और | Prakritik Jivan ki Aur
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकृतिके बोल ३
के वोरुपर ध्यान न देना । हम उसकं प्रत्येक नियमको कूचर्ते
चरते हं । हम उसके बताये रास्तेसे भटके हए ह् ।
परकृतिकी न्याय-परायणताके औचित्यके संबंधमें दो मत
नहीं हो सकते । जहां वह अपना कोई भी नियम भंग करने-
वाले अपराधीको दंड देती हैं, वहां उसके नियमानुसार चलनेपर
वह पुरस्कार देना भी नहीं भूलती ।
कंसा भी कोई रोग क्यों न हो मनुष्य उससे मुक्त होनेका
अधिकारी हे, अपनी «नियत , प्रसन्नता प्राप्त करनेका हकदार
ह । एकमात्र मार्ग उसका यही है कि वह ईमानदारीसे प्रक़ृतिकी
रारण जाय । उसे प्रकृतिके बोलॉपर चलनेकी हर तरहसे
कोशिश करनी चाहिए । भोजन उसे वही ग्रहण करना चाहिए
जो प्रकृतिमाताने उसके लिए अपने हाथों पकाया है। उसे
जल, वायु, आकाश, पृथ्वी ओर प्रकाशसे प्राकृतिक संबंध
जोड़ना चाहिए । प्रकृतिकी भाषा अत्यंत सुबोध हे, वह् अपने
आदेश सव प्राणियोको--पदु ओर मनुष्य दोनोको बहुत स्पष्ट
रूपसे देती हं ।
प्रकृतिकी कभी यह् इच्छा नहीं रही ह॑ किं मनुष्य जीवनके
सच्चे रास्ते ओर स्वास्थ्य-पराप्तिकी सरक पद्धतिके संब॑धमें
इतना अनभिज्ञ ओर इतना परेरान रहे कि उसे अपने साथियों -
से इन नियमोपर वाद-विवाद करना प्रडे ओर अपनी अन-
भिन्ञताके कारण उसे चिता ओर शंकाका शिकार बनना पड़ ।
अव हम मनुष्यसे रिक्षा न लेकर प्रकृतिकी सीख सुनेंगे ।
प्रकृतिके सिखावनके ढंग कुछ निराले हुं । उसकी रिक्षा
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