यूरोप - यात्रा | Yurope Yatra

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Yurope Yatra by विट्ठलदास मोदी - Vitthaldas Modi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन सस्यत्ताके कद्र मिमं १५ वालोका तमाजणा देखने ल्गा। सीटीपर लगी वल्वोकी कतार और जगमग करती जहाजपरकी रोशनी दीपावलीका-सा भ्राभास दे रही थी ! उेकपरके संकडो यात्री सोटखोटपर उतरनेवाले यात्रियोका लड- खडाना-सभल्ना देखकर मुस्करा रहे थे 1 कुर यात्रियोके, जो पतीस थे, उतरनेमे श्राघा घटा खगा । उन्हे मोटरवोट केकर वढ चटी । जहाजकी रोशनी दूर हो गई श्रौर मोटरबौट श्रवकारके वेरेमे भ्रा गई । उसकी रास्ता देखनेकी श्राख विल्लीकी श्राख-सी ल्ग रही थी, जौ कभी जरती, कभी वुभती रास्ता खोज रही थी । इस समय हल्की ठडक हो गई थी, जो चलती हंवासे मिलकर वडी श्रच्छी ल्ग रही थी। | नी बजे मोटरवोट किनारेपर पहुची। हम लोम फाटकपर आये । वहा खडी पुलिस हमें गौरसे देख रही थी । पुलिसका एक গাহুমী तो लगता था जैसे किगकागका भाई हो, पूरा जिन्न। मेरा सिर तो उसके पेटके पासतक ही पहुचा। क्या यहा एसे श्रादमी वहत होगे ? घाटसे निकलनेपर काहिराके लिए यात्रा कारसे शुरू हुई । कारे काटी साफ समतल सउकपर भागने लगी । श्रारभके कु मकान तो हिदुस्तानके-से थे, पर वे शीघ्र ही समाप्त हौ गये श्रौर हम लोग एक नये वसे गहरमे श्रा गये--छोटी-छोटी दोमजिली श्रमरीकी शैटीकी उमारते, वडे-वडे मैदान, सडकके दौनो तरफ वृक्ष । यह्‌ सव कु पद्रह मिनटमे ही समाप्त हौ गया श्रौर हमारी कारं निर्जन स्थानमे दौडने र्गी । सवासी मीलकी यात्राकर हम रातके बारह बजे काहिरा पहुचे। काहिरा वबईका दूसरा भाई ही हे---अधिक सुकुमार, अधिक सुदर। सुकुमार इसलिए कि इसकी प्राय सभी इमारते नई है, और सुदर इसलिए कि इसकी हर खास सडकपर दोनों तरफ वृक्ष हे शौर जगह-जगह पार्क । सारा काहिरा जाग रहा था। सडको, वाजारो और दुकानोमे खूब चहल-पहल थी। काहिरामें बहुतसे नाइट क्लब हे। ये एक तरहके थियेटर है, जहा नाच-गाना होता रहता है। ये रातको एक-दो बजे बद होते हे, तभी काहिराके लोग सोते ই




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