जैन जगत के उज्जवल तारे | Jain Jagat Ke Ujjaval Tare
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्कन्घाचायं
शील, घर्म-भीर, दयाचान्, विद्धान् , विचेकशौीले श्र परम
मात-पितु-भक्क थे । पुत्री जब विचाह के योग्य हुई,दरडकारण्य
के महाराज 'कुम्भकार' को दी गई | एक दिन महाराज कुम्भ
कार का पुरोहित, पालक, सावत्थी में ध्याया । समय पाकर
प्र दिन, उरून प्क सभा में, झनकों घकार की कु्याक्कियों रू,
नारितक मत का मराडन कर, उसका प्रचार करना चाहा |
परन्तु विद्वान, स्व.न्घ-कुमार फ शख-रूम्मत तथा कास्य
घ्रमाणों के झाग,पालक के पेर उखड़ गये। उसे भरी सभा में ,
लग्जित दो कर, कुमार के सामने श्रपनी द्वार स्वीकार करनी
पढ़ी । फुमार न उस की धघत्य्क छुयाक्ति का , व्यवहार और
सिंद्धान्त दानों को साथ रख कर, यों मुँह-ताड़ उत्तर दिया,
कि जिसे देख कर सारी सभा दंग-सी रह गई। चस, उसी
पलक से पालक, कुमार का कट्टर शत्रु चन गया | उस के मन
में, ईप्या उमड़-उमड़ कर उछुलन लगी । चद्द चहँ से श्रपने
गञ्य म श्रभ्या 1 श्रार, द्विन-तत इसी एचन्ता मे रत रहने लगा,
कि कुमारः को ्रपनी करणी का मज्ञा कैसे चखायथा जाय ।
श्र, कुमार ने, किसी पक दिन, भगवान, सुनि खुचत
स्वामी का उपदेश खुन लिया । जिसके कारण, संसार की
्सारता का योध उन्हें हो गया । उन के साथ, उस समय,
झन्य चारसी निन्यानवे साथी राजकुमार भी थे । उन का भी
चही दाल डुश्ा । तब तो इन सभी ने दीक्षा शरण कर ली ।
श्र, गरे सव के सव श्रपने जप, तप तथा संयम म निमग्न
रद कर, इधर-उधर विंचरण करने लगे । क दिन, सुनि स्क-
न्धाचार्य ने, दरुडकारण्य पदेश मे जा कर, श्रपनी संसारिक
चदिन को प्रातियोध करने की चात सोची । इस के लिए भग-
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