तेलुगु साहित्य का इतिहास | Telugu Sahitya Ka Itihas

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Telugu Sahitya Ka Itihas by ठाकुर प्रसाद सिंह - Thakur Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झ्रार्ज्न-प्रदेश £ नायक के भीरंगम्‌ के ताम्रलेख में “तिलिगनामा” शब्द का प्रयोग हुआ है । (एपिग्राफिका इण्डिका, जिल्द १४, पृष्ठ ९०) ई० सन्‌ १०२७ मं इन््रवर्मा के प्रदत्त पूर्ली ताम्रलेव मे “तिरिलिग्‌ वास्त- व्याय” शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसका अथं लिलिंग के निवासी होता है । (एपिग्राफिका इंडिका, जिल्द १४, पृष्ठ ३६०) तमिल के प्राचीनतम वे प्रथम व्याकरण “तोलि काप्पियम में आन्ध्रकी दक्षिणी सीमा “तिरुपति” बतायी गयी है । कालहस्ती तो तिरुपति के निकट है । इसके अतिरिक्त श्री वीरराजेन्द्र चोड़ (ई० सन्‌ ११६४ में ) ने अपने शिलालेखों मे आन्ध्र देश की सीमाएँ इस प्रकार बतायी हैं । पूर्वी दिशा में समुद्र, फिर अन्य दिशाओं में क्रमश: कालहस्ती, श्रीशेल तथा महेन्द्राचल (द्राक्षाराम) हैं । इससे भी “ल्िलिंग” शब्द की पुष्टि होती है । तीन प्रसिद्ध शैव तीर्थो के वीच की भूमि को “ल्िलिंग-भूमि” या “'ल्िलिंग-देश” कहा गया है । तेलुग्‌ के प्रसिद्ध वैय्याकरण अप्पकवि ने अपने “अप्पकवीयमु ” नामकं श्रन्थ्‌ में तेलुगु और तेनुगु शब्दों की उत्पत्ति इस प्रकार बतायी है । श्री क्षितिधर कालेश द्राक्षा रामंबुलनग दानरारेड त्रिक्षेत्रबल लिगम्‌ लीक्षिप ट्लिंग संज्ञनेज्रिककेककून अर्थात्‌ श्रीशैल, कालहस्ती और द्राक्षाराम नामक तीन प्रसिद्ध शैव तीथों के अस्तित्व के कारण इस प्रदेश का नाम “ल्लिलिंग” पड़ा । ते-१० “तत्‌ ब्रिलिंग निवासंबु तरकतन नाँध्रदेशवु दात्नि लिगारूदम्ये देलुगगुच दद्भवम्‌ दानिवलनं बोड में वेनुक गोंदर दानिके तेनुगुगुनंड्‌ ।“ उन तीन शैवलिग-तीर्थो के कारण आन्ध्र देश “ल्रिलिंग-भूमि” कहलाया । उसी शब्द का तदभव तेलुगु बना, क्रमशः उसी का कुष्ठ लोग 'तिनूगू” नाम से भी व्यवहार करने लगे । कुछ विद्वानों का अभिप्राय है कि द्राविड़-भाषाओं में कन्नड़ और तेलुगु का सम्बन्ध अत्यन्त निकट है । इन भाषाओं के मूल रूप हाल कन्नड़ और तेनुगु-कन्नेड़




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