विलायती उल्लू | Vilaayatii Ulluu

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : विलायती उल्लू  - Vilaayatii Ulluu

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जी. पी. श्रीवास्तव - G. P. Shrivastav

Add Infomation AboutG. P. Shrivastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
' डिनर दाय ! बजाय किताबके एक लकड़ीका डाज जो कम्बख्त रंगोन जिल्दोंकी शकलका बना हुआ था. भड़भड़ाकर निकल्त याया तर मेरी खोपड़ी तोड़ता-फोड़ता घड़ामसे मेन्नपर झा गिरा। उल्टी हुई दाबातोंसे रोशनाइकी नदी बह चली । लोग मेरी तरफ दोड़ पड़े । मुझे कुछ न सूका तो सर मुकाकर भट अपने रेशमी रूभालसे सेजपरकी रोशनाई साफ करने लगा । इतनेमे ही खाना खानेकी घरटी घनघना उठी। लोगोंका व्यान उधर बट गया । पिस्टर फ्रर्डली भी मुके दम-दिलासा देकर कि कुछ नुकसान नहीं हुमा रौर मुमे अपने साथ खानेक्रे कमरेमें चलनेके लिये कदकर शोरोंके पोछे चल्नते हुए । प्रव जाना कि पदलो घण्टी जिसने मुझे यकायक घवबड़ा दया था, बह सिफं यह वतानेके लिये थी कि डिनरमें बस अव साध घर्टेकी देर है ।/ लोगोंखे पिछड़ जानेके कारण में खानेके कमरेमें पहुँचनेके बदले एक रेजे कमरेमें घुस पड़ा, जहां बड़ी अम्मा यानी मिस्टर फ रुडल्ीकी मां लुढ़कनेबाली कुषीं-ररण्णपण् ०87 में घंघो हुई द्ाथमें दूधघका भरा कटोरा लिये झपनो प्यारी बिज्ञी पुषीको गोदमें बिठाये दूध पिल्ञा रद्दी थी श्लौर नीचे टामी दुम हिना- हिज्ञाकर बुढ़ियाके मोतकी दुझाएं मांग रद्दा था। तुरन्त सात




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now