देशी और विलायती | Deshi Aur Vilayati
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
415
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मर उषन्यान ४
नरी कर नृ बाप, सा सर भाई को खिलाश्योगों ! मैं एक
से रुपया सड़ीना पाता हूँ, में हो नहीं खिला सकता !
अपने बाल-मच्चों को भरगन-पापण में हो सब भवया सच हुए
जाता है ; चार रुपये में से एक रुपया सी करला-नतीस
कपया झापनी सी की मेज दिया करना 1
मालिक, मेरा जिपाह अभी नहीं हुआ रै:
बयां, कुनीन लासाग है! अप तक तिता नहीं हुआ 21:
नही हुआ 1
“क्यों, कुछ देप च्या 2
िटाष एननदारिट्रय दाप है । सुम रष का कणन अपनी
सकी दूं [77
“विनाइ नहीं किया यह भन्तः क्षिया ) स्व
नाग जब तक स्व कमाने नहीं लगते तब तक चिक्र नहीं
करते । यदि अगर ज़ी जासने ता उस लगा श्रौ किलायं द्ये
सकते । हमार यफुर के छाटे साहब पाय सा रुपया साइबर
पान मैं, पर श्य तक उन्होंने विवाह सहों किया 1)
में बार रुपये के बजाय पाँच सपये करते के लिए बहु
जाड़गिषाम लगा । अन्त में ४13 में राजी हा यया । बायू में
कहना यदि काम अरसा कर सका, मग से सिकफला, से साल
को घाद वाकरी बढ़ाने के सम्बन्ध में विचार करेंगे | झंमी
जाकर मुभ रसाइय के काम में नियुक्त हामा होगा |
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