विकास | Vikas

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Vikas by प्रतापनारायण श्रीवास्तव - Pratap Narayana Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विकास १९ चिपककर राधा के पास बेठ गई । राधा कुछ समता और कुछ दया से उसा पीठ पर हाथ फेरने ठगी । डीपोवालें की लुब्घध आँखे उसे देखकर दुर्ध होने लगीं । दूरे दिन प्रातःकाल्ञ वे जोग कञ्जकन्ते पर्ये । माधवी ने राधा का साथ न छोड़ा, दालाँकि डीपोबालों ने किसी दृद तक कोशिश सी की । मकान पर पहुँचते ही उन्हें एक शँगरेज़ के सामने बारी- बारी से जाना पढ़ा, झोर एक कपाज़ पर अँगूठे का निशान देकर वे बाहर झाने लगीं । वह काराज़ था उनकी शुज़ामी का दस्तावेज़, जिस पर उन्होंने अपनी गुलामी की क़ुबूलियत को पने अगूटे का निशान देकर बिलकुल मजबूत कर दिया था । माधवी ने भी उस प्रा्तासी के दस्तावेज़ पर अ्रपने श्रगु का निशान कर दिया उसी दिन शास को दह अष्ाज्ञ पर बेठा दी गई । राधा ने उसका साथ श्रव भी तड़ीं छोड़ा था, और बच भी उसके साथ किसी घनजान प्रदे. को, जिते साग “कायापानी” फे नाम से पुका- रते हैं, चल दी । उस दिन शारा फो जहाज पर वटी हे माघी पमो सव सोच रही थी । आदि जीदनसे नेर प्रर नरको कुन घटनाम्‌, षुक्‌ के यादे एक, उस्फे मानस-पटत परं 'प्राकर, अपन:- जअयनों छुटा दिखा- कर श्दर्दिति दो गहं । इसी समन राधा में घ्ाफर कहा-- क्यों, क्या यो ही चेटी रदहोगी, उठोगी नहीं १” माधवी ने या परकर कहा--नडीं बदन, उसी कप मद 1 माधती नैस्वरसमेवेदना का तोच भामाय दो । रावा मे उमे पाप बैठझर कहा परी पतली, पे भी रोती ४ । सने तुर्द रस दिया है कि लू य्दाँ निगन्तव में कडि रर्‌ गहा, : गर श्चागेभी स्कर कुटु गदा दर्‌ ता (स




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