विकास | Vikas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
631
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विकास १९
चिपककर राधा के पास बेठ गई । राधा कुछ समता और कुछ दया
से उसा पीठ पर हाथ फेरने ठगी । डीपोवालें की लुब्घध आँखे
उसे देखकर दुर्ध होने लगीं ।
दूरे दिन प्रातःकाल्ञ वे जोग कञ्जकन्ते पर्ये । माधवी ने राधा
का साथ न छोड़ा, दालाँकि डीपोबालों ने किसी दृद तक कोशिश
सी की । मकान पर पहुँचते ही उन्हें एक शँगरेज़ के सामने बारी-
बारी से जाना पढ़ा, झोर एक कपाज़ पर अँगूठे का निशान देकर वे
बाहर झाने लगीं । वह काराज़ था उनकी शुज़ामी का दस्तावेज़,
जिस पर उन्होंने अपनी गुलामी की क़ुबूलियत को पने अगूटे का
निशान देकर बिलकुल मजबूत कर दिया था । माधवी ने भी उस
प्रा्तासी के दस्तावेज़ पर अ्रपने श्रगु का निशान कर दिया
उसी दिन शास को दह अष्ाज्ञ पर बेठा दी गई । राधा ने
उसका साथ श्रव भी तड़ीं छोड़ा था, और बच भी उसके साथ
किसी घनजान प्रदे. को, जिते साग “कायापानी” फे नाम से पुका-
रते हैं, चल दी ।
उस दिन शारा फो जहाज पर वटी हे माघी पमो सव सोच
रही थी । आदि जीदनसे नेर प्रर नरको कुन घटनाम्, षुक् के
यादे एक, उस्फे मानस-पटत परं 'प्राकर, अपन:- जअयनों छुटा दिखा-
कर श्दर्दिति दो गहं ।
इसी समन राधा में घ्ाफर कहा-- क्यों, क्या यो ही चेटी
रदहोगी, उठोगी नहीं १”
माधवी ने या परकर कहा--नडीं बदन, उसी कप मद 1
माधती नैस्वरसमेवेदना का तोच भामाय दो ।
रावा मे उमे पाप बैठझर कहा परी पतली, पे भी
रोती ४ । सने तुर्द रस दिया है कि लू य्दाँ निगन्तव
में कडि रर् गहा, : गर श्चागेभी स्कर कुटु गदा दर् ता (स
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