हमारे साहित्य - निर्माता | Hamare Sahitya - Nirmmata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महावीर प्रसाद्‌ द्विवेदी , £ (सरस्वतीः के सम्पादन के श्रतिरिक्त, द्विवेदीजी ने अंग्रेजी, वैगला चौर संस्छरृत से अनेक उत्तमोत्तम पुस्तकों का श्रचुवाद्‌ भी किया है । परन्तु, द्विवेदीजो की प्रधान साहित्यिक प्रवृत्ति ष्मालोचना- 'पूण ही रददी है । खड़ी बोली के परिष्कृत नमूने के लिये जो पद्य लिखे हैं, उनमे भी उनकी छालोचक वृत्ति वर्तमान है । इनकी 'आालोचनाओं से कहीं-कहीं हास्य और व्यंग का यूढ मिश्रण है। द्विवेदीजी ने एक निपुण साली की तरह हमारे सादित्योयान को काट छाँटकर परिष्कूत करने सें बड़ी तपस्या की हूँ। इनका शरीर जितना ही तपोवरद्ध दै, हदय उतना ही कोमल एवं स्ेदाद्र है । इस समय द्िवेदीजी की श्रवस्या सत्तर वर्षं पार कर चुकी रै। प्राय: श्राठ दस वषं से अस्वस्थ द । सन्‌ १६२० से श्राप सरस्वती के सम्पादन काय्यं से विश्राम लेकर एकान्तवास कर रहे हैं 1६४ 'ापके सत्तरवे वर्ष के उपलब्त में काशी की नागरी-प्रचारिणी- सभा ने उत्सव करके श्रापको श्रमिनन्दन-गरन्थ भेट किया तथा प्रयाग में इसी उपलब्त में द्विवेदी-मेला हुआ । हसारी यही शुभाकांक्षा है -- “प्राय, झापके मनःस्वप्न को लेकर पलकों पर भावी चिर साकार कर सके, रूपरड़ भर; दिशि दिशि की श्रनुभूति, ज्ञान, शत-माव निरन्तर उसे उठावें; युग-युग के सुखदुःख श्रनश्वर --श्राप यदी श्राशीर्वाद दे, देवे यही वर!” छः देहान्त--२१ दिसम्बर, १६३८




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