बापू और भारत | Bapu Aur Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. बापू और भारत आअ्निमे वह्‌ भाणो को आहूत कर के लिए. सदा तपर स्हताहै। 4442: प्रर केवल इतने में भी बापू का व्यक्तित्व परिमित नहीं है । जरा हटकर उसे दूसरे कोने से देखिये । श्राप देखेंगे बहू धर्म के प्रकांड उत्थापक, नैतिकता के तेजस्वी संस्थापक और समाज के सुदृद सुधारक करूपे दृष्टिगोचर होता है। धमे के नाम से भड़क उठने की आवश्यकता नहीं । बापू का सम्बन्ध रूदियों रौर अन्धविन्वासों पर आधित कमेकांड तथा अनेक प्रकार के क्रिया-कलापों से आवेष्टित, उन जजर संप्रदायो से नहीं है जो संप्रति धमे के नाम से विख्यात है । इनके पंक समेतो वास्तविक धमे इव गया है । ये धर्म के सहायक नहीं बिधातक हो रहे है । धमं तो उस उच्च.सौर उज्ज्वल प्रकाश-स्तम्भ कानाम दहै जो मनुष्य के अन्तर के चारों चोर व्याप्त श्नन्धकारकी _ छिन्न-भिन्न करके उस पथ को आलोकित करता है जिस पर श्रय्रसर होकर वह्‌ अपने स्वरूप का दशन कर लेता है । स्वरूप का दशन चस चिरशान्ति का सजन करता है जिसे प्राप्न कर प्राणी फिर कुछ पाने की लालसा नदीं करता, चं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं तततः । (तदा द्रष्ट स्वरूपऽस्थानम्‌ अथात्‌ उस दखकर श्राःमा अप्रन ही स्वरूप में अवस्थित हो जाती है। अपने उस स्वरूप में, जो सर्दन ही मुक्त, निसगत: अक्षर और श्रकृत्या असीम अतएव विभु है । के 4 तासयं यह्‌ किं धमं बह प्रकाश है जो जीवन के स्वरूप-दशन का साद नारा पर अनन्त चेतन-धारा के अनन्त प्रवाह में, अनन्त बुलबुलों की भाँति उत्पन्न हुए च्रनन्त व्यक्तित्वं की विभिन्नता आर अनेकता में स्थित एक ही सत्ता अहम्‌ के अज्ञान को विनष्ट करके समष्टि की अनन्तता ` मलहा जाय यही प्रकत धमं है | यही धमं वह धारणा हे जिसपर




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