राजनीति से दूर | Rajniti Se Door

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Rajniti Se Door  by पंडित जवाहरलाल नेहरू -Pt. Javaharlal Neharu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छुटकारा ७ आगमन के सूचनार्थ नान्दो-पाठ था ? क्या यह महायुद्ध था ? में 'खाली' को भूल गया और भूल गया पहाड़ों और बरफ की शिलाओं को ! मेरा दरीर तन गया और दिमाग़ चंचल हो उठा । जब संसार सबेनाश के मुख में था और बुराई की जीत हो रही थी, जिसका सामना करना और उसे रोकना मेरा फर्ज़ था, उस समय में यहां पवैतों के इस दूर कोने में पड़ा-पड़ा क्या कर रहा था ? लेकिन में कर ही क्या सकता था ? एक दूसरा धक्का और आया-इलाहाबाद में साम्प्रदायिक दंगे, जिनमें कई मार डाले गए और कई के सिर फूटे ! थोड़े से आदमियों के जीने या मर जाने से अधिक कुछ नहीं बिगड॒ता; परन्तु यह कंसा खिझानेवाला पागलपन और नीचता हैं, जिसने हमारे देश-वासियों को समय-समय पर पतन के गड्ढे में ढकेला हे? फिर तो मेरे लिए यहां खाली” में भी शान्ति नहीं थी, छुटकारा नहीं था। दिमाग को दुखी करनेवाले विचारों से में कंसे छुटकारा पा सकता था ? अपने हृदय की धड़कन को छोडकर मं कंसे माग सकता था ? मेंने समझ लिया कि संसार के प्रमादों का सामना करना ओौर इसके क्षोभ को सहना ही पड गा, हालांकि चाहें तो कभी-कभी संसार से छुटकारे का सपना भी देख ठे सक्ते है । क्या एसा सपना सपना देखनेवारे की एक कल्पित धारणा ही नहीं हैया इसके अलावा वह कुछ ओौर भी हैँ? क्‍या वह सपना कभी सच हो सकेगा ? ।




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