जैन शिक्षा दिग्दर्शन | Jain Shiksha Digdarshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
45
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-श्युभाश्युभ कल कैसे प्राप्त होता है? । वह भी इस तरह
डो सकता दहै कि-बीतराग के भक्त देवताछोक राग-
द्वेषवाङे होने से पजकपर प्रसन्न ओर निन्दकपर अप्रसन्न
होते दे; इसलियि वे देवता वीतराग की पृजाके निमित्त |
से जो फल देते हैं वह वबीतराग से ही प्राप्त होता हे; >
यदि आरोप से ऐसा मान ले तो उसमें कुछ भी हानि
नहीं हे।
अदन्त देव में राग,* द्वेष, अज्ञान, मिथ्यात्व, दाना-
-न्तराय, खाभान्तराय, बीर्यान्तरायः, भोगान्तराय, उपभो-
-गान्तराय, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, कामः;
निद्रा ओर अविरतिरूप अटारह दूषणो का अभाव हे।
यद्यपि राग, द्वेष; मिथ्यात्वं ओर अज्ञान रूप चार.
ही दूषणो के नादा होने पर प्रायः सभी दूषण नष्ट हो- ८.
ज्ञाते 2, किन्तु बाख्कों को सर रूप से इश्वरसबन्धी ` । `
“ज्ञान कराने के लिए विल्येष विस्तार क्रिया गयादहै।
1 ` ओर कायरूप दानान्तरायादि चौदह इषणो के दृष्टिगो-
चर होने से राग्द्वेषाडि चार कारणरूप दोषों का अनु
समान किया जा सकता हे; क्योंकि कार्य से ही कारणका
` अनुमान किया जाता है | जैसे कोठरी के भीतर बेठा हि
:.... हुआ पुरुष वृष्टि के देखने से आकाशस्थ मेघ का अनु- `
` ` मान करलेताहै। न
. .* अन्तराया दानदाभवीर्यभोगोपभोगगाः .. ध
` -:. ` हासो रत्यरती भी तिज्ञुगुप्सा शोक प्व च ॥७२।॥ ज
कामो मिथ्यात्वमज्ञानं निद्रा चाविरतिस्तथा। `
: रागो द्वेषश्च नो दोषास्तेषामष्टादल्लाप्यमी ॥७३॥
५ ( हेमकोश, देवाधिदेवकाण्ड, १० २३ )
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