जैन शिक्षा दिग्दर्शन | Jain Shiksha Digdarshan

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Jain Shiksha Digdarshan by विजयधर्मेसुरि - Vijaydharmesuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-श्युभाश्युभ कल कैसे प्राप्त होता है? । वह भी इस तरह डो सकता दहै कि-बीतराग के भक्त देवताछोक राग- द्वेषवाङे होने से पजकपर प्रसन्न ओर निन्दकपर अप्रसन्न होते दे; इसलियि वे देवता वीतराग की पृजाके निमित्त | से जो फल देते हैं वह वबीतराग से ही प्राप्त होता हे; > यदि आरोप से ऐसा मान ले तो उसमें कुछ भी हानि नहीं हे। अदन्त देव में राग,* द्वेष, अज्ञान, मिथ्यात्व, दाना- -न्तराय, खाभान्तराय, बीर्यान्तरायः, भोगान्तराय, उपभो- -गान्तराय, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, कामः; निद्रा ओर अविरतिरूप अटारह दूषणो का अभाव हे। यद्यपि राग, द्वेष; मिथ्यात्वं ओर अज्ञान रूप चार. ही दूषणो के नादा होने पर प्रायः सभी दूषण नष्ट हो- ८. ज्ञाते 2, किन्तु बाख्कों को सर रूप से इश्वरसबन्धी ` । ` “ज्ञान कराने के लिए विल्येष विस्तार क्रिया गयादहै। 1 ` ओर कायरूप दानान्तरायादि चौदह इषणो के दृष्टिगो- चर होने से राग्द्वेषाडि चार कारणरूप दोषों का अनु समान किया जा सकता हे; क्योंकि कार्य से ही कारणका ` अनुमान किया जाता है | जैसे कोठरी के भीतर बेठा हि :.... हुआ पुरुष वृष्टि के देखने से आकाशस्थ मेघ का अनु- ` ` ` मान करलेताहै। न . .* अन्तराया दानदाभवीर्यभोगोपभोगगाः .. ध ` -:. ` हासो रत्यरती भी तिज्ञुगुप्सा शोक प्व च ॥७२।॥ ज कामो मिथ्यात्वमज्ञानं निद्रा चाविरतिस्तथा। ` : रागो द्वेषश्च नो दोषास्तेषामष्टादल्लाप्यमी ॥७३॥ ५ ( हेमकोश, देवाधिदेवकाण्ड, १० २३ )




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