गॉवों की समस्याएँ | Gavo Ki Samshyae

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Book Image : गॉवों की समस्याएँ  - Gavo Ki Samshyae

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गांवों की ओर ६ होगा । नवीन यंत्रों द्वारा और जहां जहां सम्भव हो पानी से बिजली उत्पन्न करके गांवों के ग्रह उद्योग धंधों का नवीन संस्करण करना होगा । पूंजी का अबन्ध राज्य की सहायता से हो और तैयार माल की बिक्रो प्रान्तीय सिंडिकेट के द्वारा की जाय । खेती पर आज कल जितने लोग निर्वाह कर रहे हैं वे बहुत अधिक हैं और यदि यह नियम बना दिया गया कि परिवार पोषण योग्य भूमि ही एक किसान के पास रहेगी तो बहुत से मनुष्यों को खेती से हटना होगा अत केवल गृह-उद्योग-घंधों से ही काम न चलेंगा । इसके लिये हमें बड़े बड़े उद्योग-धंधों का जहां तक हो सके विकेन्द्रीकरण करना होगा । जो भी मौससी कारखाने हैं उनको गांवों में र्यापित किया जाय और दूसरे कारखानों को भी जहां तक सम्भव हो वकंशाप का रूप देकर गांवों में स्थापित करना होगा । इससे यह न सममना चाहिए कि औद्योगिक केन्द्र नष्ट हो जावेंगे और नगरों का हास होने लगेगा । जिन धंघों का केन्द्रीयकरण दही उचित है वे धधघे औद्योगिक केन्द्रों में बड़े बड़े कारखानों के रूप में चलते रहेंगे । किन्तु दूसरे धंधो का विकेन्द्री- करण किया जावेगा । किन्तु यह तभी हो सकता है कि जब भारत सरकार तथा प्रान्तीय सरकारें पूण सहयोग और साइस के साथ देश की औद्योगिक उन्नति का प्रयत्न करें । भारत सरकार को अपनी कर व्यापारिक तथा आओद्योगिक नीति में आमूल परिवतंन करना होगा तब जाकर देश में यह नवीन औद्योगिक संगठन सफल होगा । किन्तु उद्योग-घंधों की उन्नति के साथ ही कृषि की उन्नति झाव- श्यक है क्योंकि भारतवर्ष में सब-कुछ प्रयत्न करने पर भी अधि- कांश जनसंख्या का पालन पोषण कृषि ही करेगा । कृषि की सफ- लता के लिए किसान को ऋणमुक्त करना होगा । इस संमस्बन्ध में




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