आखिरी चट्टान तक | AAKhiri chattan Tak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आखिरी चट्टान तक  - AAKhiri chattan Tak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मोहन राकेश - Mohan Rakesh

Add Infomation AboutMohan Rakesh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
“ढ़ रास्ता कहाँ जाता हैं ?” मैं पूछता हूं 1 लड़कों अपनी लगद़ ऐ उठ सड़ी होती है । उस के दारीर में कहीं खम नहीं है । साँचे में ढठे संग--एक सीधो रेखा थोर कुछ गोलाइयाँ। माँधों में कोई सिशक या सकोच नही । तुम्हें कहाँ जाना हैं ?” चह पूछती हूँ । वदु रास्ता जहाँ मो ले जाता हो” 1” वद्‌ हैष पढ़ती है । उस की हंसी में भो कोई गाँठ महीं है । पेड़ इस तरह वादे दिलाता है, जैगे पूरे वातावरण को उन में समेट लेना 'ाहता हो । एक पत्ता शड़ कर चककर काटा नोचे उतर माता) “यह रास्ता हमारे गाँव को जाता है,” लड़की कहो है । सूर्यास्त के कई-कर्ई रंग उस के हूंसिये में चमक जाते हैं । *ुम्हारा गाँव कहाँ हैं 7” उधर सोचे 1” यह जिपर इशारा करती है, उपर केंदरू पेहों का धुरमुट है--वद्दी जिस में सारस में अपनों गरदन छिया रको हैं। सउपर हो कोई गाँव नहीं हू 1 *ै। बढ़ी, उन पेशे के पोछे* सा बहू धपनमर सदी ररती हू--देवदार के शने को शरह सीपी । फिर ढलान से उतरने लगदी है । म भी उत के पोरे उरे लगता टे । सनि होने के साथ दरिया का जह्रमोहरा रंग पौरे-पोरे वैननो देता णाह है वृशों के साथे छम्वे हो कर अदृश्य होते जाते है । फिर भी ट्रर तक कही दोई छत, कोई दीवार नेङर नटी आती. 1 प्‌ ॥ + क्यो इंटों का बना एस पुराना भर । पर में एक बृद्ा मोर पुद्िाण्ट्वै है) दोनों मिल बर मुझे सपने जोदन को दोवो घटनाएं सुनाव हैं । दीव-दोष में छठ से एवापर विना नीये धिर घाना ह) बरूद्म वृध्पिको बात £ बाटता हैं कि उसे दह परना छोर से याद नहीं है इ्िय बृषे एर धैवलादी हूँ कि बहू बदों उसे शरन्दार होच में टोर देख है। जद रन में है गुर को बात आगिरो षटान तङ्‌ द £




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now