सीमा | Siimaa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सीमा १३
श्रौर श्रसम्भव । इस जीवन के सव सपने यू ही होते दें--सीठे, प्यारे
श्राकषंक, परन्तु श्रखम्भव ।
एक बार चद्द उसी गाली ज़मीन के टुकड़े पर से, जहाँ जंगली
लाला खिल रहा था, सीमा के साथ फूल चुनने के लिए भेजा गया
था । सर्दी की ऋतु थी । धूप खिली हुई थी और पकी हुई पीली-पीली
धास हवा में हरा रही थी । मैदान में स्थान-स्थान पर लाला के फूल
उगे हुए थे और उनसे परे पंजतारे के पेड़ों की एक पंक्ति सीमा के घर
तक चली गई थी । पँजतारे के पेड़ों पर लाल फूल श्राये हुए थे । दूर
सेये पेड लाक छातों जैसे दिखाई देते थे । सीमा श्र वदद घास की
पत्तियों को अपने हाथों से छूते हुए, दबाते हुए, झागे बढ़ते गये । घास
की पत्तियाँ नरम थीं--लम्बी, नरम, मुलायम श्र सुनहरी, जेसे सीमा
के बाल । सीमा का दुपट्टा गन से नीचे खिसक कर कन्धों पर गिर
गया था झेर उसके बाल हवा में लहरा रहे थे--कम्बे, नरम, सुनहरे ।
उसका मन विज्लल हो उठा श्र उसने चादा कि वह सीमा के बालों के
साथ यी इसी तरह खेले जिस तरह बे दोनों उस समय घास की
पत्तियों के साथ खेल रहे थे । धूप चमकदार थी श्र चमकते हुए
आकाश की इष्ठभूमि के सामने पंजतारे के लाल फूल सीमा के दोटों
की तरदद सुस्कराते हुए दिखाई देते थे । हवा में घास की सोधीसी
सुगन्ध थी,या लाजा क्ती सुगन्ध, या धतूरे के सफेद एला को कड्वाहट
परन्तु इस समय वहु भी बुरी नहीं लग रही थी चरन् इन दोनों '
सुगन्धो के साथ मिक्नकर एक अनोखी सी महक पैदा हो गई थी-
मीठी भी और कडवी भी ।
चमकता हुश्ना सुरज, पञ्जतारे की लाल छुतरियाँ, सुगन्घ से लदी
हुईं वायु श्रौर सीमा--मानो प्रकृति का जीवित श्र देवी सौन्दय
उसकी शँखों के सामने झा गया था। श्र उसका न्तस इस
श्रसीम सौन्दयं की शझन्लुभूति के बोस से इतना दब गया कि वह
सीमा से कुछ भी न कद्द सका। बस वे श्वुपचाप फूल चुनते रदे नौर बह
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