दयाबाई की बानी | Dayabai Ki Bani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.23 MB
कुल पष्ठ :
32
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घ्य्जपा श्ड
महा मोह की नींद में सोबत सब संसार ।
“दया” जगा गुर-दया सूँ ज्ञान मान उँजियार ॥३०॥।
भोर भये गुरु ज्ञान सूँ मिदी नी द॒अंज्ञान ।
रेन अविद्या मिटि गई प्रगव्यों अनुभव मान ॥ ३१ ॥
जागत ही अज्ञान सूं दरस्यो हरि गुरु रूप ।
जिनके चरन परस 'दया' पायो तत्र झचूप,॥। ३२ ॥
गुन अतीत निरगुन अझलख श्रादि निरझ्जन देव ।
चरनदास की कृपा सूँ 'दया' लकयों सब भेव ॥ ३३ ॥
दया” रूप अद्भुत लख्यों अक्की' अमर अ्गाध ।
निरखत हीं सब मिटि गई काल ज्वाल झरु व्याघ ॥ ३४ ॥
वहीं एक व्यापक सकल ज्यों मनिका में डोर ।
थिर चर कीट पतंग में 'दया” न दूजो और ॥ ३४ ॥।
नेत नेत करि बेद जेहिं गावत है दिन रन ।
'दया कु बर' चरनदास गुरु मोहिं लखायो सेन ॥ ३६ ॥
चरनदास गुरदेव ने कीन्ही कृपा झपार ।
'दया कुंवर पर दया करि दियो ज्ञान निज सार ॥३७॥
घट मठादि में रम रहो रमता राम जु होय ।
ज्ञान दृष्टि सूँ देखिये है झकातवत सोय ॥ ३८ ॥
| चौप | पं
ज्ञान रूप को भयो प्रकास ।
भयो अवधिद्या तम को नास ॥
सूक परयो निज रूप झभेद ।
सहजे मिय्यों जीव को खेद ॥
(१) माया से रदटित । निराशार । (३) साला ।
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