दयाबाई की बानी | Dayabai Ki Bani

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Dayabai Ki Bani by दयाबाई - Dayabai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ्य्जपा श्ड महा मोह की नींद में सोबत सब संसार । “दया” जगा गुर-दया सूँ ज्ञान मान उँजियार ॥३०॥। भोर भये गुरु ज्ञान सूँ मिदी नी द॒अंज्ञान । रेन अविद्या मिटि गई प्रगव्यों अनुभव मान ॥ ३१ ॥ जागत ही अज्ञान सूं दरस्यो हरि गुरु रूप । जिनके चरन परस 'दया' पायो तत्र झचूप,॥। ३२ ॥ गुन अतीत निरगुन अझलख श्रादि निरझ्जन देव । चरनदास की कृपा सूँ 'दया' लकयों सब भेव ॥ ३३ ॥ दया” रूप अद्भुत लख्यों अक्की' अमर अ्गाध । निरखत हीं सब मिटि गई काल ज्वाल झरु व्याघ ॥ ३४ ॥ वहीं एक व्यापक सकल ज्यों मनिका में डोर । थिर चर कीट पतंग में 'दया” न दूजो और ॥ ३४ ॥। नेत नेत करि बेद जेहिं गावत है दिन रन । 'दया कु बर' चरनदास गुरु मोहिं लखायो सेन ॥ ३६ ॥ चरनदास गुरदेव ने कीन्ही कृपा झपार । 'दया कुंवर पर दया करि दियो ज्ञान निज सार ॥३७॥ घट मठादि में रम रहो रमता राम जु होय । ज्ञान दृष्टि सूँ देखिये है झकातवत सोय ॥ ३८ ॥ | चौप | पं ज्ञान रूप को भयो प्रकास । भयो अवधिद्या तम को नास ॥ सूक परयो निज रूप झभेद । सहजे मिय्यों जीव को खेद ॥ (१) माया से रदटित । निराशार । (३) साला ।




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