विष्णु - पुराण खंड 2 | Vishanu Puran

Vishanu Puran by श्री राम शर्मा - Shri Ram Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चतुर्थ श्रंक-श्र० ४ ] [१४ सुमत्या: पष्टि: पुब्सहुश्नाण्यमवतु 1६1. तस्मादसमझसादंशुमानाम कुमारो जज्ेज स.. त्वसमझसो बालो बाल्यादेवासदुबूत्तोध्सूत ।८। ' पिता चास्याचिन्तयदयमतीतबाल्य: सुबुद्धिमात्‌ भविष्यतीति 161 ग्रथ तन्नापि च वयस्यतीते श्रसच्च रितमेनं पिता तत्याज 1१०। तात्यपि पट: पुन्सहस्ाण्यसमझ्सचरितमेवानुचक्र : 1११1 श्री पराशरनी ते कहा --काश्यपपुत्री सुपति और विदर्सराज की पुत्री केक्िनी यह दोनों राजी सगर की भार्या हुई ॥१॥ उनके द्वारा सन्तानोत्पत्ति की कामना के लिए श्राघारित होकर भगवादु श्रोर्व ने यह चर प्रदान किया (२ तुम में से एक से वंश-वृद्धि करने बाला एक पुत्र उत्पन्न होगा शरीर दूसरी ' से साठ हजार पुत्रों की उत्पत्ति होगी । इनमें से दो वर जिसे भ्रच्छा लगे, उसी ' वर को वह माँग ले । ऋषि द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर केशिनी ने एक पुत्र ' श्रीर सुमति ने साठ, हजार पुओों का बर माँगा ॥३-४ी। महर्षि के ऐसा ही हो . कहने पर केशिनी ने वंश की वृद्धि वाले असमंजस नामक एके पुन्न को उत्पन्न किया श्र सुमति ने. साठ हजार पुत्रों को जन्म दिया ॥५-६॥।. झसमंजस के श्रशुमन नामक एक पुत्र हुआ 1७0. वह श्रस्मकस श्रपने बाल्यकाल से ही दुराचरण वाला हुआ ॥5८॥। पिता ने समका कि जब इसकी बाल्यवस्था व्यतीत हो जायगी, तब यह सुधर जाया ।€। परन्तु उस श्रचस्था ही के निकलने पर भी उसके श्राचरण में परिवर्तन न देख कर पिता ने उसका त्याग कर दिया !।१०॥ तथा सगर के साठ हजार पुत्र भी श्रसमंजस के ही श्रनुन गामी हुए ॥ १ १॥1 ः ततश्नासंमज्ञसच रितानुका रिभिस्साग रैरपव्वस्त पज्ञा दिसन्मार्ग जगति देवस्सकलविद्यामयमसंस्पूटमशेषदोवैर्शगवतः पुरुषोत्तमस्यांशा- सूतं कपिल प्रसाम्य तदर्थमुचु: 1१२1 भगवस्नेभिस्सगरतनगैरसमझ्स- चरितमचुगम्यत्ते 1१३1 कथमेभिरसदुवृत्तमनुस रद्धिजेंगद्भूविष्यती ति 1१४ अत्यात्तंजगत्प रिवाणाय चू. सगवतोडन शरीरप्रहणसित्याकर्ण्य सगवाचादाल्परेव दिनैनिनड क्षयन्तोति 1१५1




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