आदिकालीन काव्यों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन | Adikalin Kavyon Ka Bhasha Vaigyanik Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के अनार्गत इन 19 कवियों को स्थान गदया दै - पुष्य, अज्ञात कोष है छुमान रासो है, नन्द, मसउद, कुतुबअती , सार्पान, अकेरम वै, पर्प, गमनि केदार कोष, बारपर चेणा, जल्प, भपित, नरपत नाल्ह, नरसिंह, श्ाङ्ु-धर, अमीर परतरो, पल्ला पाणद्‌ , गोरखनाथ । इनमें से पहे सात काष तो ऐसे हैं पेजनकी रपनाएं उपलब्ध नहीं हैं । ष में से रपति गे डा॥ रामकुमार कां ने ।7वी - 18वीं शताब्दी का कौप सिद्ध पफ््या है । अकरम फैल भी आधुनिक काल के कप हैं । साईदान पारण, नश्लसिंह और श्राङ्न्धर णगनिक की भी कोई रपना उपलब्ध नहीं षे । पल्ला दातद के पलायन “छा भी रपनाफाल 14365 पि प्रमाणत षी काद नो आपदिकाल की तीमा म नदौ जती । इत प्रकार पन्द, नरपति नाल्ह, गोरछना थ, अमीर पसरो की ही आपदकालीन केन्य सात में स्थान पेदणा ना सप्ताहे । आधार्य रामपन्द्र शुक्ल द्वारा उप ल्धोषत रपनारं कोति पोको नत ति (सार तरफ नेति तेम पतता विनालं को कि तिति तितत निः तेण र तो कनो शत रखा मत मेनि पिनि तोः नि तषमे न नोति परत! शक्ल णी ने बाहर रचनाओं को आपिकालीन तापहत्य में स्थान पैदा है - इनमें ” णय पाल रातौ, हम्मीर रासो, कीतलता ओर कीत पत्ताफ पे अपश्रष्ं की रधनारं हे इन्हें हिन्दी सावहत्य में स्थान नहीं पिया भा सक्ता । इनके अतिरिक्त ह्ुमान रासो, बी तलदैव रातौ, एुतरो ढी पत्या, †पयप ति ठी पदाती । इनमे से जयचन्दः प्रकाञ्च “ णत परैन्प्रका अनुपल्य है तथा छुमान रासो का रपनाकात 18वी+ इती प्तिप्रहो धुका ै। परमात रासौ एवं एर की प्ठे¶्तियां भाषा ठी दुषष्टि ते संदग्ध या परषर्ती प्रतीत होती हैं । विधापत माफ्तिकाल के कवि है । इस पकार क्ल णी द्वारा उ ल्लठत रचनाओं पते पृथ्वी राण रासौको ही अआदिकातीन हिन्दी काव्यषेस्यभे स्वीकार षका




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