जैनेन्द्र के विचार | Jainendra Ke Vichar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
367
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९२
परमात्म-तत्वके विषयमे जनेन्द्रकी आस्तिकता कछ अन्ञयवादियोकी-सी है !
वे तकसे परमात्माकों सिद्ध नहीं करना चाहेंगे । उनके ख्याल तो ' जो है सो
परमात्मा है । उसे वे * अस्तित्वकी शर्त * मानकर चलते हैं | जैनेन्द्रकी इस
माङ्कतामे हिन्दू मर्मियोकी-सी सारूप्य-प्रधान कातरता घुली हुई नजर आती है
जो अत्यधिक माननीय नहीं तो मी सर्वथा मननीय अवद्य कदी जा सकती है |
जेनिन्द्र श्रद्धाह हैं । वे अपनी श्रद्धा किसी भी चीजके खातिर खोना नहीं
चाहते, अपनी श्रद्धापर उन्द इतनी श्रद्धा है । वे कछा, जीवन, सादित्य,”--समस्त
विचारोका अन्तविन्दु उसी सत्य-तत्वकों मानते हैं । परन्तु, तो भी, वे
परमात्माको अगम और अशेय ही समझते हैं । स्पेन्सरने जब जयवाद और
अशेयवादकी मीमांसा की तब उसकी दृष्टि वैज्ञानिक अधिक थी ! पर जैनेन्धकी
आस्तिकता टालस्टाय या गाँधीके जैसी है जिसमें, विज्ञानसे अधिक, कैंटके
परमात्म-अस्तित्वकी नेतिक आवश्यकताका तर्क हो अधिक कार्षशील है ।
यहीं जेनिन्द्रके सत्य ओर वास्तवके अन्तरकों समझना होगा । तर्वशास्त्र
ब्रेडलेके * भास और वास्तव * अंथ्में कहा गया है कि ^ वास्तवफरे साथ मेर
सेबंध मेरे सीमित अस्तित्वमें है क्यो कि, इससे अधिक प्रत्यक्ष संबंधमें में
कद आता हू, क्षिवा उसके जिसे में महसूस कर रहा हूँ यानी ˆ यह् । ` ( “मासः
पु० २६ ) और यहाँ (यह ` उसी अर्थम वास्तव है जिस अर्थे ओर ङु
वास्तव नहीं है ” (प्र २२५ ) कुछ कुछ यही स्थिति ज्यूलियन हृक्स्ले जैसे
वेज्ञानिकन अपने ' साक्षास्कारययून्य घर्म * नामक पुस्तकमे स्पष्ट की है । यहीँ
तक [कि चेतन मनकी थ्योरी इंजाद करनेवाले विठियम जेम्स जैसे मनोवैज्ञानिक
भी अन्ततः जाकर जब जब रहस्यवादी बने हैं, तब तब यदद जान पइ़ता है कि
वैज्ञानिक अथवा तार्किक बुद्धि ही सत्यको समग्रतासे आकलित करनेका मामं नहीं|
उसे भाव-गम्य भी बनाना होगा । यहीं हार्दिकता ओर श्रद्धाकी महत्ता, आपसे
आप, उद्भूत ओर सिद्ध हो जाती है।
यहा जनेन्द्रके समाश्वादके विषयमे एक शब्द कहना जरूरी होगा । जनेन्धके
समह्टिबाघमें आत्म-तत्त्वको न गौण माना गया और न मुलाया ही गया है । या
कुछ सुधारकर कं तो सचे आत्म-बोधर्मेस ही समष्टि-बोध जाग्रत होगा एेसा माना
गया है । * जिघर देखता हूँ उघर तू ही तू है * जैसी सर्वात्ममावकी स्थितिमे
पहुँचनेपर मोक्षका, यानी अध्यात्मका, महत्वशाली मसला अलग या दूर नहीं रह.
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