पञ्च - प्रदीप | Panch - Pradeep
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१
जल उठे मेरे पच-प्रदीप)
चला रवि लेने को विश्राम,
दिवस वनने रजनी अभिराम,
तिसिर' से करने को' संग्राम,
आ, गईं गिरती पडती शाम,
माँगने लगी विदा जव ररिमि, उदित शशि के हो खड़े समीप)
नल उठे मेरे पच-प्रदीप !
लहर प्रतिकण मे भर अमरत्व, |
सिन्धु से लकने चटी ममत्व,
उदधि ने अपना देख प्रभुत्व,
के लिया जीवन का भी स्वत्व,
वही बन उठा गगन मे स्वाति, छिपा जब बेटी उसको सीप ।
- जल उठे मेरे पच-प्रदीप ।
किया जब अवनी ने श्र्धार,
व्योम छ तारावछि सुकूमार,
मॉँगने लगा श्रकृति' से प्यार
पुरुष से पूजा का उपहार
मनीषी कें जव हिल्ते हाथ बे लेकर के सातो दीप ।
जल उठे मेर्े पच-प्रदीप 1
[ आल इडिया। रेडियो के सौजन्य से ]
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