पथ - प्रदीप | Path Pradeep

Path Pradeep by धर्मेन्द्रनाथ शास्त्री - Dharmandranath Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ स्पोद्धात र सिक्ख गुरुओं के विषय में मेरे विचार ऋषि द्यानन्द के विचारों से भिन्न हैं। उनकी वेदार्थशेली मुझे खायणाचाय की अपेक्षा, जिस ने वेद के धम के! फर्मकार्ड के साथ मिला दिया है, अधिक अपील फरतो है परन्तु ऋषि द्यानन्द को भाषा और “घर्मसिद्धान्त', (118 प्र ०-४९०1० हा ०8।॥ 6006) पर निभर भाष्यप्रणाली के साथ, मैं नमृता पूर्वक कहूँगा कि “आलोचनाटमक वैज्ञानिक ऐतिहासिक प्रणाली” (00॥10०-४०९॥४४110-॥191070०७1) के जोड़ देना चाहिये । मेरा विश्वास है कि आरयों के धर्मों का तुलनात्मक इतिहास घेकिक विशान की छिप्री ज्योति को और भी अधिक वम. कफायेगा । ऋषि दयानन्द के नियोग सम्बन्धी बिचारों से मैं सदमत नदीं-घे मुझे प्लेटो के स्त्रोपुरषसम्बन्ध विषयक विचारों का याद्‌ दिखाते टै । तथापि में इस बालब्रह्मचारो के सोन्दर्य पर मोहित हूं। क्यों? धर्षों के अनुभव ने मेरो धद्धा के कम नहीं किया किन्तु क्षौर भी गहरा कर दिया है. क्यों! पक जाति फी सब से बड़ी सम्पि क्या है? उस के अग्रेसर नेता और भविष्यद्र॒ष्टा । उन में खे पक स्वामी दयानन्द्‌ थे। उनका मानव चरित्र ऐसा है जिस पर केर जाति या केई भी युग अभिमान कर सकता है । उनकी सत्यनिष्ठा के देखो ! उन्हें इ्स यात क्राडर नदीं कि वे स्थिर घिचार वाले न समझे जायेंगे । एमसंन फहता है कि स्थिर विचार रखना जिसे, स्थिरता, (00781810109))' समभा जाता है, मन्दू-बुद्धि धाठों का 'दौभा! है। दयानन्द्‌




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