ज्ञानी गुरुमुल सिंह मुसाफिर | Jnj-aanii Gurumukh Singh Musafir

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jnj-aanii Gurumukh Singh Musafir by कर्तार सिंह दुग्गल - Kartar Singh Duggal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कर्तार सिंह दुग्गल - Kartar Singh Duggal

Add Infomation AboutKartar Singh Duggal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जानी गुरुमुख सिंह मुसाफिर 5 में संजोया है। ये हैं--बैखिआ सुणिआं गांधी देखा सुना गांधी और वेखिआ सुणिआं नेहरू देखा सुना नेहरू । जेल यात्रा के दौरान अन्य राजनीतिक नेताओं की तरह वे किताबें पढ़ते या कविता-कहानी आदि लिखते । इन्हीं दिनों उन्होंने गांधी-गीता और बाईवेज् आफ बलैसडनैस नामक पुस्तकों का पंजाबी में अनुवाद किया । देश के स्वतंत्र होने पर ज्ञानी जी को दिल्‍ली में देश की संविधान सभा का सदस्य बनाया गया । उसके बाद वे संसद के सदस्य चुने गये । कुछ महीनें छोड़कर जब कि वे पंजाब के मुख्य मंत्री थे ज्ञानी जी लगातार संसद-सदस्य निर्वाचित होते रहे । राजनीतिक नेता के रूप में 1952 के चुनाव में अपने दल की पंजाब में जीत का श्रेय केवल उन्हीं को जाता है । एक राजनीतिज्ञ के रूप में इस जीत ने उनकी साख को और भी बढ़ाया । लेकिन जिस बात के लिए पंजाबियों की कई पीढ़ियां ज्ञानी जी को याद करेंगी वह है देश के बंटवारे के कारण लुटे-पिटे शरणाधियों के पुनर्वास में उनका योगदान । चाहे कोई पश्चिमी पंजाब से आया था या उत्तर पश्चिमी सीमा-प्रांत से या फिर सिंध से ज्ञानी जी ने हर किसी की तन-मन से सहायता की । ज्ञानी जी के निवास स्थान 21 फिरोजशाह रोड नई दिल्‍ली पर शरणाधियों की बाढ़-सी आई रहती । . विस्थापितों के प्रति उनकी व्यग्रता और करुणाभाव को देख-देख कर मैं चकित होता रहता । जिनका कोई मददगार नहीं था वे सहायता के लिए ज्ञानी जी के पास आते । और क्या मजाल जो कोई कभी निराश लौटा हो खाली हाथ लौटा हो । देश की आजादी के बाद कितने ही वर्ष ज्ञानी जी पंजाब के राजनीतिक आकाश पर उज्ज्वल नक्षत्र की तरह चमकते रहे । कई बार पंजाब प्रदेश कांग्रेस के वे निविरोध अध्यक्ष चुने गये । और इस प्रकार पंजाब को उन्होंने एक स्थिर नेतृत्व प्रदान किया । लाला. लाजपतराय के बाद कहा जा सकता है कि ज्ञानी गुरुमुख सिंह मुसाफिर अपने समय में पजाब के एकाकी नेता थे जिन्हें राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक नेता के रूप में माना गया । चाहे मन से वे कट्टर कांग्रेसी थे कांग्रेस पार्टी में वे 1922 में शामिल हुए लेकिन यह बात नहीं कि अन्य दलों के व्यक्तियों के साथ उनकी मित्रता नहीं थी । उनके दोस्त अकाली भी थे और कम्युनिस्ट भी । कई प्रगतिशील लेखकों से उनकी गहरी मित्रता थी । इनमें फंज और अली सरदार जाफरी मोहनसिंह और सन्त सिंह सेखों मुल्कराज आनन्द और सउ्जाद जह्दीर बलराज साहनी और भीष्म साहनी शामिल हैं । अन्तर्राष्ट्रीय शांति सम्मेलन और प्रगतिशील लेखकों की विश्व-स्तरीय सभाओं में वे एक से अधिक बार सम्मिलित हुए । सेर-सपाटे के इच्छुक शानी जी काफी दुनिया घूमे थे । विश्व के कोने-कोने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now