कौटिलीय अर्थशास्त्र में विवाह एवं उत्तराधिकार एक समीक्षात्मक अध्ययन | Kautiliy Arthashastra Men Viwah Evm Uttaradhikar Ek Samikshatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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को उपकुत किया है । भारतवासी दी नहीं' वरद्र समूचा किव इसमें वीर्णत वीक >िविजयाो से 'वीव्ध रूपों ते उपकृत हुआ -बै - ऑधकरण -क्म ते अर्थात्त्र में वीर्णत ট্লিঅতাঁ कौ ननम्नक्त्‌ उव्लोकित किया जा क्ता है । प्रथम प्रकरण का नाम है ~ वनयाशकिगिरिक । हस अधिकरण मेँ मुछय रूप से एक राजकुमार को दयि जाने वाने विनय एवं ततरिरिक्षण व्यक शिवषयों की' स्थान <दिया মতা ই | হল विषयों में 'क्याशिविजयक विचार आ ्वीक्षकी एवं त्रयी क्य का वर्णन किया गया दे । इस्क्ते अत्तीरक्‍्त वात्ता एवँ दण्डनीसति, वृदजनो की साति, काम्क्नोधाशिदि जड दुर्मण स्प अन्तदरुवीः का परित्याग, सदाचारा राभा क जीवन चर्चा, अमात्योंकी नयक्त, मन्योः एव॑ पुरोहित की गिनद्ीक्त अमात्य ब चरण-परटीना, बाद गव्य रवर्ग है । हस्के अतिरक्त गुप्तचरों तै पम्बिन्धत স্লো টিসি মলা प्तचरौ क ननयुक्त क्यो तथा केये कमै ताय 9, गुप्तचरो- की क्या योग्यता होनी चाहिए, इत्यादि 1विषयो को भी महामीदम राजनीतितिशा स्त्री कौटिल्य ने अपनी लेखनी का शविघय बनाया ই | राजा स्वकीय देश के कुत्य-जदृत्य की केसे रक्षा करे, रात्रु देश के कृत्याकृत्य को केसे 'मिलाये, एवं मन्व्राध्किर विषयक विषय भी उत्त महान कीव की लेखनी से नही वच स्के । हस्रे अतिरिक्त सन्देशवाहक के रूप में राजदूतों को रात्रुदेश में भेजना, राजपुत्री से राजा की रक्षा, राजजुमार एवं राजा का सम्बन्ध राजा के कार्य, राज- भवन का निर्माण एवं आत्मरक्षा' का प्रबन्ध आदि शिवणषयोँ को भी इस महत्‌ विभूति ने अपनी पावन राशि का विषय बनाकर किव के समक्ष प्रस्तुत किया है ।




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