अर्थशास्त्र के सिद्धान्त | Arthshastra Ke Siddhant

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Arthshastra Ke Siddhant by शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~न श्र्थशास् का विपय ৭ की तृप्ति करने के लिए काम में लाई जाती है, इस कारण कोई भी आवश पूरी तरद्द से तृप्त नही होती। एक आवश्यकता की तृप्तिकी सीमा तक पहुँचने के र | | ह्मी उस वस्तु का उपयोग दूसरी श्रावश्यकता को पूरा करने मे क्रिया जाने लगना हं } ` एक वस्तु को भिन्न-भिन्न उण्योगों में इस प्रकार बॉटा जाता ह करं सीमान्त (वा) पर उससे मिलने वाली तृष्ति एक बरावर होती है । इस प्रकार दम 1 अपने सीमित साधनों का श्रच्छे से अच्छा उपयोग करते हैं। ‡ इस प्रकार राविन्स ने अर्थशास्त्र विज्ञान की पुरानी परिभाषा को. प्रस्वीकार कर दिया। मार्शल के समर्थकों का विचार था कि अर्थशास्त्र मनुष्य- समाज के भौतिक कल्याण (17118) ७८४7८) के कारणों का अव्ययन करता है। राबिन्स अपनी परिभाषा के आधार पर अर्थशास्त्र विजशान का भवन दो शिलाश्रों पर खडा करना चाहता है । (१) झ्ावश्यकताएँ: अपरिमित हैं और (२) उनको तृप्त करने के साधन न्यून हैं । यदि यह दो बाते न होतीं तो कोई भी समस्या उपस्थित न होती | जब आवश्यकताएँ अनन्त हैं. और उनको पूरा करने के साधन सौमित ह ऐसी दशा में मनुष्य को कुछ आवश्यकताओं को छॉटना होगा | कुछ को वह पूरा करेगा कुछ को छोड़ देगा, क्योकि अपनी सब ग्रापश्वकताशों को तो वह पूरा नहीं कर सकता । राविन्स के अनुसार मनुष्य का आशिक प्रयत्न इस वात में सन्निद्दित है कि वह सीमित साधनों का उपयोग अपनी अपरिमित आवश्यकताओं को प्रा करने मे करता है | श्रतु, राविन्स के श्रनुसार आधिक समस्या अपरिमित आवश्यकताओं , श्रौर उनको নাল करने के लिए सीमित सांधंनों की परिस्थिति में ही उत्पन्न होती हैं। जब मनुष्य का कार्य इन दो परिस्थितियों से सम्बंधित होता हे तभी वह आधिऊ प्रयत्न का जा सकता दै | वदि कोई मनुष्य मनोरजन के लिए प्रयत्न करता है, हाफ़ी या फुटवाल खेलता है अथवा अपने साथियों से बान-चीत करना है तो वह कोई आयिंक कार्य नहीं करता | परन्तु जब कोई व्यक्ति अपना दैनिक कार्यक्रम बनाता हैं. जिससे कि वह अपने सीमित समय का अच्छे से अच्छा उपयोग कर सके, अथवा वह अपने पास जो धन है उसको भिन्न भिन्न কাশী में लगाने फ्री योजना बनाता है, अथवा जब एक ग्रहस्थ अपनी सासिक आय को फिम प्रफार दूरदशितापूर्वक व्यय करे इसका নলহ बनाता है तो वह आधिक कार्य करता है। ऊपर के उदाहरण में मनुष्य अपने सीमित साधनों का भन श्रच्छा उपयोग करना चाहता द! जव हम अपने साधनों का सर्वोत्तम उपग रसते र নী হয বন श्रधिकतम वपि (02 पापा ऽ३({5(२८- 100) प्राप्त करते । अधिकतम उपयोगिता (901) को प्राप्त करना ही च




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