कबीर साहब की शब्दाबली भाग - 1 | Kabir Sahab Ki Shabdawali Part - 1

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Book Image : कबीर साहब की शब्दाबली भाग - 1  - Kabir Sahab Ki Shabdawali Part - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीचन-चरित्र थू दिया कि इस समय पुरी के मन्दिर में झाग लग जाने से जगन्नाथ जी का रसाइया जलने लगा था मेँ ने यह पानी डाल कर श्राग चुभ्ा दी श्र रसाइये की जान बचा ली । राजा ने पुरी से समाचार मँगाया तो चह बात ठीक निकली । ४ सिकंदर लोदी बादशाह ने कबीर साहेब को मार डालने के लिये सिक्कड़ से वंघवा कर गंगाजी में डलवा दिया पर न डूबे तब आग में डलवाया पर एक वाल बॉँका न डुझ्मा फिर मस्त हाथी उन पर छोड़ा वह भाग गया कबीर साहेव के गुरमुख शिष्य जो संत गति को प्राप्त हुए धर्मदास जी एक प्रसिद्ध वैश्य साहकार थे। वह पहले सनातन घर के अजुयायी थे श्और घ्राह्मणँ की उन के यहाँ वड़ी भीड़ भाड़ रहा करती थी | उन से कबीर साहेब सिले और सत सत की महिमा गाई इस पर धर्मदास जी ने उनका काशी के पंडितेँ से शास्राथ कराया जिस में यह लोग पूरी तरह परास्त हुए श्रौर धर्मदास जी ने कवीर सादेव को गुरू घारन करके उन से उपदेश लिया श्र बहुत काल तक उनका सतसंग शऔर खुरत शब्द का श्रभ्यास करके झाप भी संत गति को प्रास हुए । उन की बानी बचन से उन की गुर सक्ति झपूर्व प्रेम श्रौर गति घिदित हेतती है । कथचीर साहेव नें मगहर में जो काशी से कुछ दूर चस्ती के ज़िले में है देह त्याग की । उन के गुप्त होने का समय जैसा कि ऊपर लिख झाये हैँ सम्बत श्पू७५ जान पड़ता है। उन के मगहर मेँ शरीर त्याग करने के बहुत से प्रमान हूँ घर्मदास जी ने शपनी श्रारती में इस भाँति लिखा है -- शठई श्वारती पीर कदाये। मगदर झ्ागी नदी वहाये ॥ नामा जी ने कहा हे।-- भजन भरोसे श्रापने मगहर तज्यो शरीर । झविनाशी की गोद में विलखें दास कबीर ॥ दादू साहेव का वाक्य है -- काशी तल मगहर गये कबीर भरोखे नाम । सन्नेदी साहेब मिले दादू_ पूरे काम ॥ इन के श्रंत काल के सम्बन्ध में यह प्रसिद्ध है कि हिन्दुओँ ने इन के सतक शरीर को जलाना श्र सुखलमानेँ ने गाड़ना चाहा इस पर बहुत झगड़ा हुझा झंत को चहर उठा कर देखा तो सतक स्थान पर शरीर नदारद था खुंगंधित फूल पड़े थे । तब दिन्दुओँ ने फूल लेकर मगदर में उनको समाधि बनाई और




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