गुलाल साहब की बानी | Gulal Sahab Ki Bani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : गुलाल साहब की बानी  - Gulal Sahab Ki Bani

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जीवन-चरित्र ग लाल सादव जाति के छुन्नी चुरला सादव के गुरुमुख चेले, जगजीवन साइव के स गुरुभाई, श्रौर भीखा साइव के युद थे जैसा कि उस वंशावली से जा दूसरे पू्ठ पर दी हुई है प्रगट होगा । इनके जीवन का कुछ हाल नहीं मिलता यद्यपि इन के स्थान सुर्कुड़ा ज़िला ग़ाज़ीपुर और दूसरी जगहें। में खोज को गई। लेकिन जाकि यद जगजीवव साहब के सददकाली थे इनके जीवन का समय विक्रमी सस्वत १७५० श्ौर श्०० के दुरमिंयान में पाया जाता है । गुलाल सादव ज़िर्मीदार थे और इनके शुरू बुला सादव जिनका श्सल नाम 'बुलाकीराम था पदले उनके नौकर दल चलाने वगेरद के काम पर थे। बुझा साददव जब किसो काम को जाते, भजन ध्यान में लग जाने से श्रक्सर देर कर देते थे। इन की सुस्ती की शिकायत लोगों ने युलाल साइव से की श्यौर णुलाल सादव कई बार इन पर खफा हुए । पक दिन का ज़िक्क हैं कि चुन्ना साहब हल चलाने को गये थे घ्ौर वहाँ भगवंत का ध्यान श्ौर मानसी साध सेवा में लग गये। उसी समय गुलाल सौहव मौके पर पहुँच गये श्रोर वैलों को दल के साथ फिस्ते श्र बुझा सादव को खेत की मेंड़ पर श्राँख वंद किये हुए बैठा देख कर समझे कि वद्द श्यौघ रहे हैं श्र क्रोध में सर कर पक लात मारी । चुल्ना साहइव एक बारी चैँकि उठे श्औौर उनके हाथ से दद्दी छुलक पड़ा । यद कौतुक देख कर गुलाल साददव इक्के वक्त होगये क्योंकि पहले उन्हें ने चुज्ा साहब के दाथ में द्द्दी नहीं देखा था । पर बुन्ा साहव बड़ी ब्ाधघीनता से युलाल सादव से वोले कि मेरा श्पराध छिमा करो में साधा की सेवा में लग गया था श्रौर सोज्न परोस चुका था केवल दद्दी वाक़ी था उसे परोस दी रहा था जा शाप के दिला देने से छुलक गया । यदद गति शपने नौकर की




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now