धर्म परीक्षा | Dharm Pariksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३
मनोवेग सन्तुष्टावित्त हो यनिरयोकी सभाम वैठता हुवा ॥७०
` इति श्री अमितगत्याचाय्यक्तत धर्मपरीक्षा नामक संसत भथकी
बालाववोधिनी भाषाटीकार्मे प्रथमपरिच्छेद पृण भया ॥ ২11
अथानन्तर उस समामे किसी एक भव्य पुरूपने अवापि
ज्ञानी मानिमहाराजकी नमस्कार करके विनय सहित पूछा कि
॥ १ ॥ हे भगवन् ! इस असार संसारमें फिरते हुये जौवोंको
सुख तो कितना है ओर दुःख कितना है सो कृपा करके
सुझे कहिये ॥ २॥ यह परश्च सुनकर मुनिमहाराजने कहा
किदे भद्र! संसारके छख दुःखका विभागकर कना वडा
काठिन हैः तथापि एक दृष्टान्तके द्वारा किंचिन्मात्र कहा
जाता ই, क्योकि टृष्ान्तके লিনা अल्पङ्ग जीवोकी सम-
क्षमे नरं आता सो ध्यान देकर घुन ॥ ३-४ ॥
अनेक जीवोकर भरी हुई इस ससाररूपी अटवीकी समान
एक महा वनम दैवयोगसे कोई पथिक ( रस्तामीर) यवे
करता हुवा ॥ ५॥ सो उस वनम यमराजकी समान सडको
ऊंची क्रिये हुये कोधायमाने बहुत वदे भयङ्कर हाथीको
अपने सन्धुख आता हुवा देखा ॥ ६ ॥ उस्र हाथीने उस
भयभीत पथिकको भीखोके मागंसे अपने आगे कर शिया
सो उसके आगे २ भागता हुवा वह पथिक पहिले नहिं
देखा ऐसे अन्धङकपे गिर पडा ७॥ निसथकार दुर्गम
नरकमें नारकी धर्मका अवलम्बन करके रहता है, उसीप्रकार
वह भयभीत पथिक उस दूपे गिरता २ सरस्तंव कहिये
सरक जड़को अथवा वड़की जडकों पकड़कर लटकता हुव
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