मध्यकालीन हिन्दी काव्य की तांत्रिक पृष्टभूमि | Madhyakalin Hindi Kavy Ki Tantrik Prishtbhumi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) इसो प्रकार शिव की पत्नी दुर्गा का भी उल्लेख मिलता है--जो सिहवाहिनी है 1 शिवे के साथ हाथी भी मिलता है, गणपति का प्रारम्भिकं रूप शायद यही है) एक अन्य ताबीज पर शिया (91199 ) देवी का उल्लेख मिलता है 1 इसमे देवी चित लेटी हुई है और उसके पेट से एक पौधा निकल रहा है । इसी ताबीज की पीठ पर एक मनुष्य एक स्त्री की बलि दे रहा है। प्रो० हाजनी ने प्राचीन शाक्तमत के विषय मे स्पष्ट लिखा है--स्त्री की बलि और शेरवाहिनी दुर्गा से यह स्पष्ट है कि देवी को बलि दी जाती थी और यह देवी रक्‍त - प्रिया और भमकर थी। एशिया माइनर मे भो इस देवी का सम्प्रदाय प्रबल था ! देवी से भयभीत व्यक्ति ताबीजो पर स्वस्तिक चिह्न बनाते थे । शिया या शिवा देवी का प्रतीक योनि था | देवी पर खरगोश की भी बलि दी जाती थी । सिधु - घाटी मे एक उसहिश या उषा का भी उल्लेख मिलता है। इसी तरह एक अकुश या अकु देवता का उल्लेख है जो वेद के आदित्य से सादुश्य रखता है? इस प्रकार प्रारम्भिक आयं - देवताश का आदिस्रोत हत्ती -जन के देवता कगे माना गयौ है 1 हत्तीदेव $€ यई ही विष्णु हुए, कुयेयश ही शिव बने और शन्ताश ( 91121128} ) ही इन्द्र के रूप में विकसित हुए । डॉ० ह॒प के विपरीत प्रो० ह्ाजनी ने प्रमाणित किया है कि बेबीलोन के देवताओ का प्रारम्भिक आये - देवताओ पर प्रभाव पडा था । इस प्रकार हाजती के अनुसार ३००० ई० पूर्व के आसपास एशिया माइनर, उत्तरी सीरिया तथा उत्तरी पश्चिमी मैसोपोटामिया से सिंधु - घाटी में आकर लोग बस गए होगे। उसके बाद २००० ई० पुव॑, द्रविडो का आक्रमण सिधु की घाटी पर हुआ होगा और तत्पश्चात्‌ वेदिक आर्यों का आक्रमण हुआ होगा जिल्होने द्रविडो और अन्य सिधुवासियो को दस्यु कहा । यदि प्रो० ह्ाजनी सिन्धु - लिपि को पढ सके है और उन्होने पढने में भूल नही की है तब पश्चिमी एशिया में प्रारम्भिक आयो का सम्बध और प्रारम्भिक आर्यो ओर परवर्ती वेव्किं आर्यो का सम्बध स्पप्ट हो जाता है | किन्तु यदि प्रो० ह्ाजनी के लिपिज्ञान को अभी पूर्ण न भी माना जाय तो भी सिन्धु - घाटी के पुरातत्व से इतना स्पप्ट हें कि सिन्धु घाटी में चाहे कुछ दर




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