सभ्य मानव का इतिहास | Sabhy Maanav Kaa Itihaas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जगदगुरु शंकराचार्य १५
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और शान्तिदायक प्रतीत हुईं । फिर अशोक जंसे महान् सम्राट् का
आश्रय मिल जाने के कारण भी बौद्ध धर्म को प्रोत्साहन मिला । परन्तु
यह स्थिति भारत में बहुत देर तक नहीं रह सकी । बौद्ध धर्म में अनेक
बुराइयां चुस आई । उसकी प्रतिक्रियास्त्ररूप कमंकांडी ब्राह्मणों को फिर
सिर उठाने का अवसर मिलां। कुमारिलभट्ट और मंडनमिश्र অজ
धुरन्धर पंडितों ने जेन और बौद्ध पंडितों को बारम्बार शास्त्रार्थों में
परास्त किया ग्रौर फिर प्राचीन वेदिक धर्मं का उदय हुआ ।
किन्तु इस बार ब्राह्मणो ने जिस नये धमं को चलाया था, उसमें
कमंकांड की बहुत प्रधानता थौ । भक्ति का अंश समाप्त हो चला था
ग्जौर लोग केवल बाहरी विधि-विधानों द्वारा ही स्वर्ग और मोक्ष प्रास
करने के लिये प्रयत्नशील रहते थे । इससे भी बुरी बात यह थी कि
सारा हिन्दू समाज संकड़ों खंडों में विभक्त हो गया था। कुछ लोग शिव
के उपासक थे, तो कुछ लक्ष्मी की पूजा करते थे । कोई कुबेर का भक्त
था, तो कोई शेष भगवान को ही सब कुछ समभता था। सांख्यवादी,
गोरखपन्थी, कापालिक, योगी, श्रघोरी, पितुपूजक आदि कितने ही
ग्रनगिनत सम्प्रदाय प्रचलित हो गये थे । ये सब अपने-अपने ढंग से पर-
लोक में सुख पाने के लिये तरह-तरह के विधि-विधान करते रहते थे ।
ऐसे समय इस बात को बड़ी आवश्यकता थी कि किसी प्रकार सारे
समाज को एक सूत्र में बाधा जाय; क्योंकि एकता का सूत्र न रहने से
समाज की माला का खंडित होकर बिखर जाना सुनिश्चित था । समाज
को एक नया रिद्धान्त प्रदान करके उसे एकता के सूत्र में पिरोने का यह
महत्वपूर्णा काम शंकराचार्य ते किया।
अद्वेत मत के प्रवतक--
शंकराचायं ने बताया कि परमात्मा भ्रर्थात् ब्रह्म केवल एक है।
सारे देवी-देवता और यह सारा संसार उस ब्रह्म की लीलामात्र हैं ।
वस्तुतः यह् सारा विद्व ब्रह्मांड ब्रह्म के सिवाय और कुछ है ही नहीं ।
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