विज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान | Vigyan Aur Vyavaharika Gyan
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विज्ञान और झमरीकी नागरिक 7
वैज्ञानिक प्रणाली के सम्बन्ध में श्री पिश्नसंन के बयान से अपने मतभेद का
उल्लेख मे वाद मे करूंगा । इस समय हमे श्रपना ध्यान उनकी पुस्तक के प्रथम
भाग में निहित दो बातों पर लगाना है । प्रथम यह कि तथ्यों का सही और
निप्पक्ष विवेचन केवल विज्ञान के क्षेत्र में सम्भव है ; तथा दूसरे, इस प्रकार के
अनुशासन से ऐसी मानसिक प्रवृत्ति का निर्माण होगा जो सब मामलों में निष्पक्ष
विवेचन कर सके ।
इसमें कोई संदेह नहीं कि विज्ञान सम्बन्धी जाँच के लिए यह आवश्यक है
कि तथ्यों का सही और निष्पक्ष विवेचन किया जाय । परन्तु इस दृष्टिकोश
का आविष्कार उन लोगों ने नहीं किया था जिन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान का
सूत्रषात किया था । और इस वात की सर्वोपरि महत्ता भी एकदम नहीं स्वीकार
की गई । प्राकृतिक विज्ञानों के इतिहास के अध्ययन से स्पष्ट है कि आधुनिक
विज्ञान की हर शाखा की अरिपक्वावस्थाओं में तकंसंगत विचारों के बजाय
आवेशपूर्ण वाग्युद्ध अधिक लिखे गये । यदि मैं ठीक समभता हूँ तो सन्रहवीं और
श्रठारहवीं शताब्दियों में ही यह भावना क्रमशः विकसित हुई कि वैज्ञानिक अनु-
संधानकर्त्ता को प्रयोगशाला में घुसते ही श्रपने पर आत्मानुशासन लागू करना
चाहिए। प्रत्येक नई पीढ़ी यह अनुभव करती गई कि किस प्रकार उसके पूर्वे-
/ वर्तियों के पूर्वाग्रह और मिथ्याभिमान उन्नति के मार्ग में विध्त बने रहे हैं, और
यथार्थता एवं निष्पक्षता के मानदण्ड क्रमशः उन्नत होते गये । परन्तु जव तक
. विज्ञान शौक मात्र रहा-जंसा कि 19 वीं शताब्दी तक था--प्रत्येक ग्रनुसंधान-
कर्ता श्रपनी खोजों को ग्रत्यन्त महत्वमूणं मानता रहा । वह अपनी खोज को
अन्य अनुसंधानकर्त्ताश्ों की खोजों से श्रधिक महत्त्वपूर्ण मानता था और यदि इस
दौरान उसकी खोज का महत्त्व कूछ अधिक हो जाता तो विरोधी को फौरन परले
सिरे का भूठा करार दिया जाता था ।
विज्ञान-संस्थाओं के निर्माण, उनके बढ़ते हुए महत्त्व और विज्ञान को विशेष
वृत्ति मानने की भावना के उदय से धीरे-धीरे वातावरण में परिवर्तन आया ।
गैलीलियों के उदाहरण से शिक्षा लेकर कुछ श्रसाधारण प्रतिभावान व्यक्तियों
ने आत्मनियन्त्रण की श्रावश्यकता को समझा और उनकी यह् प्रवृत्ति ही कसौटी
वन गई | राजनीति श्रथवा धमं सम्बन्धी शास्त्रार्थो में प्रयुक्त विधियो का उप्-
योग 'दर्शन' सम्बन्धी शास्त्रार्थो मे भी करने वाले व्यक्ति का स्थान आधुनिक
वैज्ञानिक ने ले लिया जो अलंकारिक भापा द्वारा श्रपने प्रतिपक्षी को ग्रपनी बात
मनवामे या. निन्दा द्वारा उसे अपने क्षेत्र से निकालने पर विधवास नहीं करता ।
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