जीवन दर्शन | Jivan Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्रीहरिः ॥ जीवन-दर्शन (१) अवाह पदं सभी साधनोका पर्यवसान अचाह पदमे है | कारण कि अचाह होनेपर ही अग्रयत ओर अप्रयत्न होनेपर दी साध्यते अमिन्नता प्राप्त होती है, जो जीवनका मुख्य उद्देश्य है । अब विचार यह करना है कि चाहकी उत्पत्तिका हेतु क्या है रुचि और अरुचिरूपी मूमिमे चाहरूपी दूर्वा- उत्पन्न होती है। यदि रुचि-अरुचिका समूह न रहे तो चाहकी उत्पत्तिके लिये कोई स्थान ही नहीं रह जाता; कारण कि रुचि-अरुचिके आधारपर ही सीमित अहंभाव सुरक्षित रहता है | उसीसे चाहकी उत्पत्ति होती है | अतः सीमित अहंभावके रहते हुए अचाह पढकी प्राप्ति सम्भव नदीं है । सीमित अहंभावका अन्त कैसे हो ८ इसके ভি रुचि-अरुचिके खरूपको जानना होगा । रुचि ओर अरुचिका सम्बन्ध खः ओर ঘেরে है। 'खःकी विमुखता “परःकी रुचि जाग्रत्‌ करती है ओर “परःकी अरुचि खण्की रुचिकरो सवक बनाती है} '्पर्की अरुचि निपेघात्मकन्ह्पसे शमे प्रतिष्ठित जी° द° १--




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