जीवन दर्शन | Jivan Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ श्रीहरिः ॥
जीवन-दर्शन
(१)
अवाह पदं
सभी साधनोका पर्यवसान अचाह पदमे है | कारण कि
अचाह होनेपर ही अग्रयत ओर अप्रयत्न होनेपर दी साध्यते
अमिन्नता प्राप्त होती है, जो जीवनका मुख्य उद्देश्य है ।
अब विचार यह करना है कि चाहकी उत्पत्तिका हेतु क्या है
रुचि और अरुचिरूपी मूमिमे चाहरूपी दूर्वा- उत्पन्न होती है।
यदि रुचि-अरुचिका समूह न रहे तो चाहकी उत्पत्तिके लिये कोई
स्थान ही नहीं रह जाता; कारण कि रुचि-अरुचिके आधारपर ही
सीमित अहंभाव सुरक्षित रहता है | उसीसे चाहकी उत्पत्ति होती
है | अतः सीमित अहंभावके रहते हुए अचाह पढकी प्राप्ति सम्भव
नदीं है ।
सीमित अहंभावका अन्त कैसे हो ८ इसके ভি
रुचि-अरुचिके खरूपको जानना होगा । रुचि ओर अरुचिका
सम्बन्ध खः ओर ঘেরে है। 'खःकी विमुखता “परःकी रुचि
जाग्रत् करती है ओर “परःकी अरुचि खण्की रुचिकरो सवक
बनाती है} '्पर्की अरुचि निपेघात्मकन्ह्पसे शमे प्रतिष्ठित
जी° द° १--
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