जीवन का सद्व्यय | Jivan Ka Sadvyaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपोद्घात हे सष्युलोकनिवासियो ! सा्टांग नमन करो, भौर शाति के साथ अद्धा.पूर्वक इश्वरीय उपदेश ग्रहण करो । जहाँ तक सूये फा प्रकाश पहुँचता भौर वायु यहती हो, तथा सुनने के लिये कान और बोध होने के लिये सन हो, यहाँ तक जोवन के नियमों का शान पहुँचे, तथा सत्य के सिद्धांतों का आदृर भौर अनुसरण हो । दैश्वर হী समस्त वस्तुरभों का उद्धम स्थान है । उसकी शक्ति भसीम भौर ज्ञान झनंत है। उसके वात्सल्य श्रौर सौजन्य का कभी अंत नहीं होता । वह मध्य-साग में अपने सिंहासन पर बैठता है । इससे सारा विश्व उसके श्वासोच्छुचास से भ्राण-वायु भ्थवा चेतन्य अहदण करता है । वह भपनी उडेंगलियों से तारकाओं को स्पशं करता है, भर पे झाहाद-पूर्वक भ्रमण करने श्वगतो हैं। चद्ट वायु-रूपी पंस्ों द्वारा देश-देशांतर में विचरण करता और झनंत विश्व में जहाँ चाहे, अपनी इच्छा को प्रेरित करता है। व्यवस्था, दया और संदरता की सृष्टि उसी के हाथों हुईं हे | उसके समस्त कार्यों में ज्ञान की ध्वनि गज रही है, परंतु मानव बुद्धि उसको पहचान नहीं पाती भनुष्य को बुद्धि को स्वप्त की तरह ज्ञान का आसास-मात्र दोता है। वह मानो अंधकार में देखता है, तक॑ करता ই, ঘহ धोखा ही खाता. है ।




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