भूदान - यज्ञ नाटक | Bhoodan-yag Natak
श्रेणी : इतिहास / History, नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.55 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ड्प भुदान-यश
हूं उससे में अखे नहीं मूँद सकता और न किसी को कह सकता कि वह
अस गरोबो के परवाह न करे। इस गरीब, को पूर्र; तौर से पहचान
इसे दूर बरने के लिये हमे सारी कोशिशों करन हूं ।
कुछ च्यवित्त--येशवा। बेदाक ।
खड़ा हुआ ब्यविति--यह देश वितना मर व है इसको जानकारी
के लिये आपका उत्तरप्रदेश, जो इस देन का सबसे यडा सूच। है, उसके
सबसे बडे जिले गोरखपुर के गाद का ही एवं दूषय मेने सिनेमा के एक
फिल्म में उतारा हूँ ।
एक व्यक्ति--अच्छा, हमारा जिला गोरखपुर *
खड़ा हुआ व्यक्ति--(वीच हो में ) जी हो, यह दुदय है उन
मरंत्वी का पोवर में से अनाज के दाने चुनत, उन्हें घोव र सुखाने, फिर
अपनी रूघ। सूखी रोटियों के लिय उन दानों के आटा पीसनें और उस
आटे की। रोटिया खाने का, जिसका हाल अप लोगो ने भी सुना होगा ।
एक व्यवि्त--हा, हा, सुना है ।
दूसरा ब्यवित--सुना बा आखो से देखा है। और इस दृश्य को
देखबर आंखों ने चौयारे आासू यहाये है ।
तंससरा व्यवित--( खडे होकर, खड़े हुए व्यदित से ) शायद
आप इस सबब मं एव दाते न जानते होग, जो मुझ माठूम हैं
खड़ा हुआ ब्यक्ति-नकौन सी ?
तीप्तरा ध्यषित--जो ये गोबर में से अनाज वे' दाने चुने जाते है,
उनका में। ठेका होता है, जिसके सेंत में से गंयर वे दाने चुपे जाति
है उस जा सबते ज्यादा बीमत देता हूँ उसे ही गोवर में से दाने चुनने
वा अधिकार मिलता हैं ।
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