भगवान महावीर का आदर्श जीवन | Bhagwan Mahavir Ka Adarsh Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
684
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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द्वारा भगधान मद्दाबीर के उपदेश का वशेषतः
का प्रभाव अवतक अक्षत, अच्चुएण एवं अट्टूट बना रद्दा ছ (অন আম मं कर
शाखाएं हँ--दिगम्बर, >्वताम्बर, स्थानक वासी हत्या । पर इनम काद् शाखा या
उवशाखः देखा नदीं है, जे मासाहारी दौ ओर श्रदिसाधम काकाराटङ्पसल) दला
ती हो इन सभी शालः उपशासाश्नां के नर-नारी, बाल-चद्र वालक. কষা
मांसाह!र के कट्टरविरोधी हैं। यहांतक कि यदि भेजन करत समय काइमालका
नाम लेदे तो वे भोजन छाड देते हें ।
मांसाहार का निषेध सभी धर्मों भे दे | देदों में मार्दिस्यथात् सर्व भूतानि! मोटे अक्षरों
में (लखांद । मनुस्स॒ति भें ' अर्ददिला सत्यमस्तेय ब्रह्मचयापारेग्रद्दः ' नियमो का उर्लख
[নল पचमदावर्तो कनाम प्रतिपाद्वित दं । भतृह्रिजीन श्पन वेराग्य रातक्म
प्राणाघाता न्षव्।त्त+ पर धन हरण सयमः सत्य वाक्य 1
काले शकत्या प्रदाव युवातंजन कथामूकमावः परषपा ॥
तष्णःखता वममा गुरुषु च वनयः सवभूतानुकम्पा 1
सामान्य: सर्वश ख्रप्वनुपद्त विधिः अयसामेप पंथा ॥
का उजःचल उपदेश कियादे पर मांसाहार खुघार की नीच भगवान् अ्रीकृप्ण-
चन्द्रज्ोने ४००० वर्ष पद्ल डालीथी। उन्दोंने अपने जीवन कालमे कभी मांलाद्वार
नहीं किया। माखन मिलगी आर खात्विक भोजन द्वी करत रहे ओर उसीका प्रचार
किया । इसका प्रभाव यद डे कि भारतवर्ष में भगवान् भ्रीकृष्णचन्द्र के लप्खों मन्दिरों
में केचल सास्यिक भोजन का हो भाग लगता दे । समो प्रकार की वजत चस्तुओं
का वहिप्कार ५ | यद्द दवा पर भी यदि हिन्दू जाति स पूछा जाय झि उल्लमें कितने
इस शुद्धादार बतका पालन करने वाल ८ तो उत्तर यद्दी द्वागा कि लिवाय बेश्पा आर
गोड़, नाभर ओर सनाख्य ब्ाह्म गो के सभी हिन्दू मगवान् श्रोकृष्ण चन्द्र ज। चण मानते
डुय भी श्रभी मांसाद्वार के चक्कर में ईे । क्या यह शोचर्न/य श्रवस्या नद्ीीं ६ ¦ पर
किया क्या जाय ' घर्मस्य तत्व॑ निद्धितं गुदायाम्। 'सगवःन् मदाधीर ७ क्या शाक्क খা,
उनक उपदणश म च्या जाद थार ह, जेनघनम क्या गुप्त रहस्य दे कक जसन
उनका उपदेश खुना, जा जनघम की ध्वजा के नीच आया, वही पक्का शाकपाताहारी
होगया, हिंसा का कठोर विरोधी हो गया | कोई न कोई बात अद्भुत अवश्य दे, कोई
गुप्त घार्मिक शाक्त जरूर है जो अपना ज'दू का काम करजाती हे । दुनिया के बड़े से
बढ़ घर्मनता, उपदेष्टा, नवी, पेगम्वर, मांसाइार की निन्दा करते कच्ते थक्र गये,
डसके त्याग का डपंदेश करते करते द्वार गये, पए उनके अनुयायियों पर कुछभी
असर न हुआ । एक इसो वात की तुलना से भगवान् महावीर ओर उनके এন বা
महत्व समभले | यदि यह करा जाय के भगवान मद्दावीर के खिद्धान्त मानने নাত
की संख्या बहुत कम दें सिर्फ १३ लाख 6 और बोद्धध अयवा दूसरे धम्मेवाज्लों
की संख्या कराड़ों की दे तो उत्तर हे कि संख्या की अधिकता किसी छ्लिद्धान्त के
महत्व की माप नदीं हे । दुनिया में अधिकांश मनुष्य अपढ़, निरक्तर, अखभ्य प्व
४ दहता परमा घमः ' सिद्धान्त
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