भारतीय व्यापर | Bhartiya Vyapar
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
121
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
के. एल. बंसल - K. L. Bansal
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शिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११)
वस्तुओं का उपभोग बरता रहा है। विविध प्रकार की নজী-তী মহন, कसय,
रखायनिक पदार्थ और ओद्योगिक कच्चा माल विदेश से मंग्राकर हम देश की झोद्योगिक
उन्नति करने में समर्थ हैं। यद्यपि अभी औद्योगिक दृष्टि से भारत अपनो बाल्यावस्था
मे है, किन्तु धीरे-घोरे उसका स्थान समुन्नत झ्ौद्योगिक राष्ट्रों में होता जा रहा है।
संयुवन राष्ट्र अमेरिका में टीन तनिक भी उत्पन्न नहीं होती, किन्तु बह उसका उपभोग
करता है।
इस विवरण से हम इस निष्कर्ष पर पहुचते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार किसी
देश की सर्वाज्जपूर्णा उच्चति का साधन है । इससे साधनों का समुचित उपयोग ही नही
होता, उसको उत्पादन-क्षमता भी बढतों है। यह देय विरोपके वौद्धिक विनास,
सास्ट्डतिक सुधार झौर सम्यता का कारण भी है। सम्पर्क बढ़ने से मनुष्य का
दृष्टिकोण झति व्यापक होता है। झन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एक अदभुत साथन है । जिन
देशों की राजनीति, धर्म भौर विश्वासो में भारी अन्तर होता है दे भी व्यापारिक
क्षेत्र मे सम्पर्क बनाये रखते हैं ॥ इस भाति यह सहनशीलता, सहृदयता भर सतुलित
विचारधारा को जन्म देता है । विविध प्रकार के लोगो से सम्पर्क बढ़ने झ्रौर विभिष्न
देशों के रीति-रिवाज, रहन सहन के ढंग एव विचारधारा इत्यादि की जानकारी से
मदुष्य का ज्ञान बढता है । बह सहुचित वातावरण से उठकर विश्वव्यापी वातावरण
में भ्रमण करना सीखता है। भन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सघ के तत्वावधान मे विभिन्न देशों
की समस्पापो का समायान इमका एक जोता-जागता उदाहरणं है ।
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