बया का घोंसला और साँप | Baya Ka Ghonsala Aur Sanp

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Baya Ka Ghonsala Aur Sanp by लक्ष्मीनारायण लाल -Laxminarayan Lal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लक्ष्मीनारायण लाल -Laxminarayan Lal

Add Infomation AboutLaxminarayan Lal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रोते हुए. नन्‍्हें को अपनी गोद में लिए हुए पल्नैंग पर लेटी हैं লল্তা सो नहीं रहा है और प्रभा जी उसे सुलाने के प्रयत्न में हैं | बरामदे . मेँ गीता तस्वीरों से भरी हुईं कोई किताब उलट-पुलट कर देख रही है उस की घ्ंघराती अलकें बार-बार उस के मुंह तक आ जाती हैं ओर वह है कि गे हई ; अलके अनायास कुछ चरणो के जिए उस के सरके घघराले बालो से सिमट जाती हैं | चौके में एक ओर रत्ती बैठी हुई श्राया _ गुँथ रही है और दूसरी ओर आग के सामने विधवा पारो बुआ बैठी खाना बना रही है | बुआ पसीने से तर है और वह बार-बार अपने सते- द आँचल से मंह के पसीने को पोछुती हुई सोच रही है---हाय ! अब




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now