ब्रह्मचर्य - दर्शन | Brahmacharya Darshan

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Brahmacharya Darshan by पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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त्म-शोधन १ ४७ गरम है तो स्वभाव से ठंडी ज्ञह्दी हो सकती । छाशय यह है कि एक वस्तु के परस्पर विरोधी. दो स्वभाव नहीं हो सकते हैं । श्तएव थछात्मा स्वभाव से या तो विकारसय-सलिन ही हो . सकता है या निर्मल-निर्विकार ही हो सकता है । मगर जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है आत्मा में दोनों चीजें हैं-मलिनता भी और निमंलता भी तब अपने झाप यह बात समभक में आ जानी चाहिए कि वह दोनों आत्मा के स्वभाव नहीं हैं । दोनों उसमें विद्यमान हैं झवश्य सगर दोनों उसमें स्वाभाविक नहीं । एक चीज़ स्वभाव है और दूसरी चीज़ विभाव है झागन्पुक है ीपाधिक है। और दोनों में जो विभाव रूप दे वही हट सकती है । स्वभाव नहीं हट सकता । तो झात्मा का स्वभाव क्या है? और विशाव क्या है ? यह समभने के लिए वस्त्र की मलिनता और नि्मंत्रता पर विचार कर लीजिए। वस्त्र में मल्िनता वाहर से श्ाई है नि्मेत्रता वाहर से नहीं झाई। निर्मत्रता तो उसका सहज भाव है स्वभाव है। तो जिस प्रकार निर्मलता वस्त्र का स्वथाव है छौर सलिनता उसका विसाव है ओौपाधिक भाव है उसी प्रकार निर्मल्रता ात्सा का स्वभाव है और विकार तथा वासनारएँ विभाव हैं। जो धर्म वस्तु में किसी कारण से झा गया है किन्तु जो उसका झपना रूप नहीं. है वही विभाव कहलाता है | श्मौर स्वभाव वह कहलाता हैं जो वस्तु का मूल ओर श्यसली रूप




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